प्रेम की कसक

प्रेम की कसक


साकी:

समकालीन विषयों पर अपनी लेखनी चलानेवाले बहु प्रतिभा संपन्न अनुपलाल मंडल की चर्चित कृतियों में से एक कृति है,’साकी’
आलोच्य उपन्यास में उपन्यासकार ने समाज के उस पहलू की तरफ सहृदय पाठकों का ध्यान आकृष्ट करने की पुरजोर कोशिश की है जिसपे बात करने से सभी कतराते हैं और अपनी सज्जनता के विरुद्ध मानते हैं।जिस समस्या को बड़े ही प्रभावपूर्ण तरीके से यथार्थ की अभिव्यक्ति के साथ प्रेमचंद ने ’सेवासदन’में रखने की कोशिश की है,उसी परिपाटी को आगे बढ़ाने के क्रम में अनुपलाल मंडल ने ’साकी’ की रचना की है।आलोच्य उपन्यास में एक नारी की पीड़ा,उसकी ख्वाहिसों,उसके जुनून,उसकी परवाह और उसके सामाजिक दंश की व्यथा गहरे घुली हुई है।जिसके सपने बचपन से लेकर जवानी तक बीखरते रहें हो उसे जब एक उम्मीद की शाम नसीब हो तो वह भला उसे कैसे रौशन न करें।मगर आलोच्य उपन्यास की नायिका मीना के जीवन में आई खुशियों को ग्रहण तब लग जाता है,जब उसी का प्यार उसे उसकी औकात ये कह कर बताता है की,’तू तो वैश्या है वैश्या।’मीना को मानो काटों तो खून नहीं।बार बार ठोकरें खानेवाली मीना अब सच में टूट जाती है।यह समाज हमेशा से महिलाओं को दबाता सताता आया है।कभी दोस्त, कभी दुश्मन,कभी रिश्तेदार,तो कभी प्यार बनकर।मगर नारीमन तो मोम का बना होता है जरा सा प्यार का प्रकाश क्या पड़ा पिघल सी जाता है।एक बार एक स्त्री किसी को प्रेम कर ले फिर वह चाहे जैसा भी हो वह उसकी सदैव ही परवाह करती है यही इस उपन्यास की भी कथा वस्तु है।दो भिन्न भिन्न समुदाए से ताल्लुक रखने वाली दो अलग अलग स्त्रियों के मनोभावों का यहां सफलता पूर्वक मुखरित किया गया है।एक पत्नी और एक प्रेयसी के द्वंद को सामाजिक परिस्थितियों के साथ साथ स्वर दिया गया है।प्रेम की कसक,सामाजिक बंधन,पारिवारिक जिम्मेदारियां,आत्मग्लानि और अपनत्व के भाव से सराबोर करनेवाली कथा को समेटे है आलोच्य उपन्यास ’साकी’।

साकी एक वैश्या के ऊपर लिखी कहानी है।वैश्या का नाम मीना है।मीना उसका बचपन का नाम है। मीना पढ़ने लिखने में बहुत ही होशियार थी।उसे बचपन से ही गाने का शौक था।सादा रहन सहन उसको पसंद था।बचपन में मीना की मां मीना की सगाई के लिए रिश्ता लाई थी। बिचारी मीना तकिए में सर रखके रोती रही पर उस लड़के से मिल न सकी। छः महीने बाद मीना की जिंदगी में कुमार नाम के लड़के का आगमन हुआ।चाय पर चाय मीना उसको पिलाती रही और अपने गाने का स्वर कुमार को सुनती रही।उसके (मीना)गाने का कुमार पर ऐसा असर हुआ की कुमार मीना को दिल दे बैठा और मीना कुमार को।पर ये रिश्ता ज्यादा नहीं चल पाया। एक दिन कुमार ने नशे की हालात में मीना को वैश्या बोल दिया। मानो मीना का सब कुछ छीन गया।मीना के मन में सवालों की बरसात होने लगी।क्या चाहत ये सब बोलने देती?क्या वैश्या होना इतना बुरा है?क्या वैश्या की इस समझ में कोई जगह नही?तरह तरह के सवाल मन में आ रहे थे।देखते ही देखते एक दिन कुमार का सब कुछ छीन गया।वह रोड पर आ गया।पर कुमार पर मीना की मोहब्बत कम न हुई।कुमार का राज भी अब मीना के सामने आ गया।कुमार शादी सुदा है।अब मीना के मन में फिर से सवालों की छड़ी लग गई।क्या कुमार से मोहब्बत सही है या नहीं? एक दिन मीना कुमार को कोठे पर से बेईज्जत करके भगा देती है।फिर कुमार भी कभी का न आने की सौगंध ले ले लेता है।कुमार के न आने से मीना परेशान हो जाती है और बॉम्बे चली जाती है।कुछ दिन प्रयास के बाद मीना को फिल्मों में काम मिल गया और मीना ने अपना नाम मिस लीला रख लिया। कुमार भी बैचेन था और दिल में कही न कही मीना से मिलने की उम्मीद थी।कुमार भी उसी जगह पहुंच गया जहा मीना काम करती थी।इंटरव्यू दे कर कुमार संपादन का कार्य करने लगा। पहले दिन ही कुमार की अच्छी और प्यारी बातो से सबका दिल जीत लिया। जल्द ही कुमार को एक अच्छी जगह और अच्छे पैसे मिलने लगे।एक दिन काम करते करते कुमार मिस लीला की केविन के पास पहुंच जाता है।वहां जाते ही कुमार को मीना के होने का अहसास होता और वहा सभी से पूछता है,पर कोई मिस लीला का पता नही बताता। एक दिन लीला का पता चल ही गया एक ड्राइवर के द्वारा।पर कुमार यकीन नहीं था की मिस लीला ही उसकी साकी (मीना) है। एक दिन पेपर में मीना की फोटो और पता देखता है और समझ जाता है की, मिस लीला ही उसकी मीना है।मीना का एड्रेस पर जाता है और उससे बात करने की कोशिश करता है,मगर मीना कुमार के घर पहुंच जाती है। कुमार भी मीना से मिलने पहुंच जाता है,और देखता है की उसका सारा सामान उसकी आंखों के सामने था जो उसने साकी (मीना)को देने के वादे किए थे।कुमार की पत्नी बताती है ये सब मीना ने ही अपने पैसे से दिलाया है।कुमार उससे बार बार माफी मांगता है।

आलोच्य उपन्यास समाज की उस सच्चाई को परिभाषित करती है जिसमें सारे हक केवल एक पुरुष को ही होते है।यही पुरुष अपनी अय्याशियों के लिए स्त्रियों को कोठे पर बिठाते भी हैं और फिर समाज में उन्हें बेईज्जत भी करते हैं।औरतों को कठपुतली की भांति नाचनेवाले ये नहीं जानते स्त्री अगर सृजन का आधार है ,तो विनाश की सूत्रधार भी वही है।एक स्त्री के मनोभावों को बड़ी ही गहराई और बेबाकपन से उद्धृत करने का सार्थक और सफल प्रयास किया है अनूपलाल मंडल जी ने।आज के लेखकों को इनकी रचनाओं से सीख लेनी चाहिए की सामाजिक

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