इंसानियत जिंदा है,पर.

इंसानियत जिंदा है,पर.

पृष्ठ-३.
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     वहीं सड़क के किनारे रखे सिवरेज के,बड़े-बड़े पाइपों में बैठी,एक छोटी सी बच्ची,यह सारा माजरा देख रही थी।जब उससे रहा ना गया,तो वो बारिश में भीगती हुई ओटो के पास आकर हरप्रीत से बोली-
 "क्या हुआ दादा जी..आंटी रो क्यों रही है!"
 छोटी सी बच्ची को देख कर, हरप्रीत कातर भाव से बोले-
     "बच्चे..आंटी की तबीयत बहुत खराब है,जिसे अस्पताल ले जाना जरूरी है।पर मेरी ऑटो बिगड़ गई है और कोई मदद भी नहीं मिल रही,क्या करें..!"   कहकर हरप्रीत फिर इधर-उधर भागने लगे।
    उस नन्हीं बच्ची ने कुछ देर सोचा और फिर एक और भाग चली।उन पाइपों के पीछे कुछ दूर ही झुग्गियों की बस्ती थी।बच्ची ने एक झुग्गी का पर्दा उठा प्रवेश किया और हांफते हुए एक महिला से कहा-
   "मां..सड़क पर एक आंटी की तबीयत खराब है..ओटो भी खराब है..मदद चाहिए..चलो ना मां.!"

बच्ची की बात सुनकर मां ने कहा-
“अच्छा..चल मैं चलती हूं!”
दोनों ही लगभग भागते हुए, सड़क पर ऑटो के पास आईं। महिमा को कराहते देख,उसकी मां को सारा माजरा समझ आ गया।
“जा..अपनी दादी और दूसरे लोगों को भी बुला और यहां जल्दी आने के लिए कह दे।”उसने बच्ची से कहा।
बच्ची दौड़ पड़ी और पास के झुग्गियों में,अपनी दादी को सारा माजरा बताया और सभी झुग्गियों में जाकर,सबको जगाया। धीरे-धीरे सब लोग जाग उठे और हर झुग्गी में चिराग जल उठे।जहां थोड़ी देर पहले अंधेरा पसरा था, वहां अब रोशनी फूट रही थी।
धीरे-धीरे सब लोग हाथों में लालटेन,दीया बाती लेकर,ऑटो के पास बढ़ गए।वहां उस बच्ची की मां महिमा के पास बैठी,उसे ढांढस जता रही थी।
बच्ची की दादी ने आकर सारा माजरा समझा और अपनी अनुभवी जानकारी से,वहां एकत्रित स्त्रियों को कुछ समझाया।और प्रसव का सारा जिम्मा आप ही संभाल लिया।
उन लोगों की ऐसी संवेदना देख,हरप्रीत और अमृतपाल हतप्रभ रह गए।जहां सभ्य कहलाने वाले,इज्जतदार लोगों से मिन्नतें करने के बाद भी,कोई मदद को तैयार ना हुआ था,वहीं यह तिरस्कृत वर्ग के लोग.. इंसानियत की एक मिसाल बनकर आगे आए थे!
थोड़ी देर में सब महिलाओं ने मिलकर,आवश्यकता की सारी सामग्री एकत्रित कर ली।हरप्रीत एक ओर बैठ गए और अरदास करने लगे।झुग्गी वासी पुरुष हरप्रीत और अमृतपाल के पास आकर,उन्हें दिलासा देने लगे।
काफी वक्त गुजरने के बाद, आखिर सुख की घड़ी आई।उस सुखद घड़ी में,उस बच्ची की दादी ने आकर खुशखबरी सुनाई-
“मुबारक हो..लक्ष्मी आई है। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं। परंतु इस बारिश में उन्हें घर ले जाना संभव नहीं।”फिर थोड़ा हिचकीचाते हुए हरप्रीत से बोली-“अगर बुरा ना मानो तो, बिटिया और नवजात को आज रात,हमारी झुग्गी में आराम करने दो।बारिश घटते ही इन्हें घर ले जाना।”
दादी की बातों में आग्रह और फ़िक्र का एहसास देख, हरप्रीत आत्म विभोर हो उठे।
वो अपने स्थान से उठे और बूढ़ी अम्मा के कदमों में घुटनों पर बैठ,चरणों को स्पर्श कर कहा-
“आप तो किसी देवी से कम नहीं हैं।इसमें बुरा मनाने का सवाल ही नहीं।आपका आश्रय स्थल,हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं है।आपने हमारी बहू और नवजात को जीवनदान दिया है।हम ताउम्र आप सबका एहसान नहीं उतार पाएंगे!” हरप्रीत और अमृतपाल की आंखों से आंसू बह रहे थे।
सब मिलकर महिमा और नवजात बच्ची को उठाकर झुग्गी में ले गए।

  हरप्रीत सोच रहे थे,सभ्य और असभ्य में कितना फर्क था। अपने आप को शिक्षित कहने वाला सभ्य समाज,अपने अहम में इतना मतवाला हो गया है के,सामाजिक और इंसानियत के सारे कर्तव्य भूल बैठा है!
और..एक ओर यह अशिक्षित, असभ्य..मुफलिस वर्ग,जिसे समाज अवहेलना करता है, मानवता की एक मिसाल है! क्योंकि इनमें कुछ हो ना हो संवेदना और तहजीब जीवित है!

  दुनिया में इंसानियत जिंदा है,पर.. इसका दायित्व कुछ लोगों,दिलों या समुदायों तक ही सीमित क्यों है.?इसका विस्तार.. हर किसी के हृदय में क्यों नहीं है?क्यों इंसान इंसानियत भूल बैठा है? काश!अगर हर कोई इस की अहमियत को समझ ले,तो दुनिया कितनी खूबसूरत हो जाए!

    हरप्रीत ने सतगुरु का शुक्र अदा किया और उस नन्हीं बच्ची, जो फरिश्ता बनकर आई थी,को अपनी गोद में उठाकर सीने से लगाया..और सुबह होने का इंतजार करने लगा....


              समाप्त!

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