चाँद की पुकार

चाँद की पुकार

चाँद की पुकार

कदम रखा है,तुमने मुझ पर।
यह तो तुम्हारा है हक़।
बच्चों को उसके मामा ने,
आने से रोका है कब?

जानता हूँ यह प्रथम नहीं,
तृतीय पग तुम्हारा है।
तुम्हारी सफलता और खुशी में,
मैंने अपना अमन चैन वारा है।

मैं ही हूँ बच्चों का मामा,
मैं सलमा का चाँद हूँ।
करवा चौथ पर दर्श दिखाता
सुहागन का अरमान हूँ।

मैं कवि की अद्भुत कल्पना
प्रिय का मुखड़ा चाँद हूँ।
कभी चूड़ी,हँसिया कभी रोटी,
कलम का फ़रमान हूँ।

अब मासूम कल्पनाओं पर,
पानी फिरने की बारी है।
मानव खोजी वृत्ति के आगे,
सारा ब्रह्माण्ड वारी है।

दाग़ देखकर मुझमें प्यारो,
प्यार कम न करना।
अपने हित तुम मेरे सँग,
धरती -सा हाल न करना।

किरण वैद्य ‘कठिन’

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