क्रोध में आदमी

क्रोध में आदमी

क्रोध में आदमी
खो देता है बोध
कहते है क्रोध में आदमी अपना सुध – बुध खो बैठता हैं , उस समय उसको किसी भी चीज का सही से भान नहीं होता है ,उसे सही-गलत का बोध भी नहीं रहता हैं ।भगवान महावीर ने क्रोध को अग्नि की उपमा दी है। अग्नि जहां प्रकट होती है उसे जलाती हैं और जो अग्नि को स्पर्श करता है वह उसे भी जलाती है। इसी प्रकार क्रोध की अग्नि जिस हृदय में प्रकट होती है उसको तो दुखी करती ही है आस-पास वालों को भी दुखी कर देती है । क्रोध वह उत्तेजक वस्तु है जो जीवन की मधुरता और सुंदरता का नाश करती हैं ।क्रोध वह ज्वाला है जो दूसरों के साथ साथ स्वयं का भी ह्रास करती हैं ।जहाँ क्रोध है वहां अहंकार का सर्वदा वास होता है ।क्रोध अवस्था में सिंचित क्यारी भी जल कर राख बन जाती हैं । क्रोध में पागल मनुष्य वाक् संयम को लाँघ जाता हैं ।क्रोधित व्यक्ति का विवेक और धैर्य कोसों दूर भाग जाता हैं । क्रोध में मनुज दुर्बल बनता है पर उसको कहाँ सही का भान होता हैं । सचमुच वह सबके दया का पात्र बन जाता है । इसलिये कहा है कि क्रोध जब आये तो डालो मुंह में मिश्री , पानी कुछ मिनट अपने मुँह में रखो या पी लो पानी के दस घूंट आदि और साथ में वहाँ से उठ कर चले जाओ दूसरे कक्ष में या वहाँ हो तो मौन धारण कर लो। गुरू महाश्रमणजी ने यह मन्त्र बताया है कि उवसमेण हणे कोहं की धुन शुरू कर दो । गुरु महाप्रज्ञ ने ज्योति केंद्र पर सफ़ेद रंग का ध्यान बतलाया हैं ।जिसके प्रयोग से अरुण भाई झवेरी का गुस्सा शान्त हुआ यह प्रत्यक्ष दिखलाया हैं । क्रोध के परिणाम पर भी हमें सही से विवेक पूर्वक चिंतन करना है । तनाव,भय, लोभ व अहं आदि से दूर होकर क्रोध के हर भाव-प्रभाव को विसरना है । क्रोध शमन के पूज्यवरों ने उपाय सुझाये है ।हम कर उनका प्रयोग क्रोधाग्नि को बुझाएं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *