स्वराज की लड़ाई के इतिहास मे अनसुनी रह गई घटना का विवरण :
गुजरात के आदिवासी लोगो ने भी स्वराज कि लड़ाई मे अपना खून बहाया है ।वे अपनी जान की परवाह किए बिना शहीद हुए है ।एसे एक नहीं करीबन 1200 लोगो ने ,गरीब किसानो ने शहीदी स्वीकार ली थी .यह घटना ज्यादा प्रकाश मे नहीं आई थी किन्तु गणतन्त्र दिवस के समारोह मे दिल्ली मे आयोजित होनेवाली परेड मे उसका टेब्लो रखने के कारण ये घटना ने समग्र हिंदुस्तान का ध्यान केन्द्रित किया था ।आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे तब इनहोने ये ऐतिहासिक स्थान की मुलाक़ात ली थी।वह जाकर इन शहीदो को पुष्पांजलि अर्पित की थी। उनकी यह दूरंदेशिता के कारण यह घटना पर पूरे देश का ध्यान गया था। यह घटना पर पूरे देश की रोशनी गिरि थी।उस घटना की जानकारी देखिये ।गुजरात के साबर कांठा जिले के विजयनगर तहसील मे स्थित दढ़ियाल गाँव का यह इतिहास है ।इस गाँव का मुख्य व्यवसाय खेती और पशु पालन का है। यहा गुजराती और हिन्दी भाषा का प्रभाव है.7 मार्च 1922 के दिन टेक्क्ष का विरोध जताने के लिए यहा एक सभा का आयोजन किया गया था.यहा जालियावाला बाग जैसी ही घटना घटी थी। इस सभा मे अंग्रेज़ो द्वारा गरीब किसानो पर गोलीबार किया गया था।किसानो के पास लकड़ी और धारिया जैसे हथियार थे। इसके अलावा कोई हथियार इनके पास नहीं थे। अंगेजों के इस गोलीबार का सामना कर शके एसी स्थिति मे वे नहीं थे।इस सभा मे अंग्रेज़ो ने अंधाधुंध गोलीबारी करके करीबन 1200 किसानो को मौत के मुह मे धकेल दिये थे। इस घटना मे शहीद हुए लोगो के लिए यहा इनकी याद मे पल गाँव मे स्मारक बनाया गया है। इस हत्याकांड का उल्लेख 18 अगस्त 2008 के संग्रह मे देखने को मिलता है।
आदिवासियो के हत्याकांड की घटना के गीत विजयनगर की आदिवासी महिला ओके गीतो मे आज भी गूंज रहा है।गुजरात के दूर दराके के गाँव मे घटी हुई घटना मे क्रूर हत्याकांड हुआ था इस हत्याकांड मे शहीद हुए आदिवासियोकी शहादत आज दंतकथा बन गई है। जिसे भारतीय स्वराज के इतिहास मे काही स्थान नहीं मिला है। स्वराज प्राप्ति के संग्राम मे बहुत सारी घनाए हम इतिहास मे सभी जानते है किन्तु कुछ क्रांतिकारी शहीदो की घटनाए हमे आज इंटरनेट के माध्यम से जानने को मिल रही है।
गुजरात के साबर कंथा जिले की बात करे तो सान 1919 मे पंजाब के अमृतसर के जालियावाले बाग मे चल रही एक सभा मे हजारो क्रांतिकारियों पर अंग्रेज़ो ने अंधाधुंध गोलीबारी करके दर्दनाक भयावह हत्याकांड का सर्जन किया था। इस ऐतिहासिक घटना की असल प्रतिकृति हत्या कांड सान 1922 मे गुजरात मे साबर कांठाजिले के छोटे से गाँव मे घटी हुई थी।अंग्रेज़ो ने इस गाँव के गरीब किसानो पर भरी महेसुली टेक्स लागू किया था।इस टेक्स का विरोध करने के लिए पाल-दढ्वल जेसे दूर के छोटे से गाँव मे क्रांति का नारा गूंज उठा था।
स्वराज की लड़ाई के समय यह जिला महि कांठा जिले के नाम से जाना जाता था।राजस्थान मेवाड़ के गांधीवादी नेता मोतीलाल तेजवत ने अंग्रेज़ो द्वारा लागू किए गए भरी टेक्स के विरोध मे एक सभा का आयोजन किया गया था।जिस मे विजयनगर के बावल वाड़ा,कांतर,विश,सोना,पानरवा,ठेकाणा,और पाल गाँव के हजारो किसान इकट्ठे हुए थे।इस टेक्स का विरोध करते हुए जबरजस्त क्रांतिकारी जेहाद शुरू हुई थी।इस जेहाद ज्यादा तेज बने इसके पहले अंग्रेज़ो ने भयके कारण इसे शुरू होते ही दबा देने के लिए कोशिश शुरू कर दी।
अंग्रेज़ो ने खेरवाड़ा राजस्थान स्थित मेवाड़ से कोटसे(एम बी सी )की एक टुकड़ी मेजर एस जी शट्टन और सूबेदार सुरतू निवास की अगुवाई के नीचे उसे पलट दिया 7 मार्च 1922 के दिन एकदम शांति से इस सभा मे आते हुए हजारो किसानो को कूटनीति से क्रांतिकारी किसानो को मौत के घाट उतारने की साजिश रची गई।अंग्रेज़ो के पालतू लोगो द्वारा एच जी शट्टन ने कुछ होने की खबर अंग्रेज़ो को दे दी गई थी,इस लिए शांति से चल रही इस सभा मे शांति से प्रवचन सुन रहे इस आदिवासी गरीब किसानो पर गोलीबारी का आदेश दे दिया गया था।
सभा मे मुख्य मुद्दो की समझ आए उसके पहले अंग्रेज़ो ने अमानवीय रीत से क्रूरता से इस किसानो पर अंधाधुंध गोलीबारी की।कुछ लोग जान बचाने के लिए भागते हुए ही गोलीबारी के शिकार बन गए ।कुछ लोग दौड़ते दौड़ते कुए मे गिर गए।कुछ लोगो को अंग्रेज़ो द्वारा कुए मे धकेल दिये गए ।कुए मे गिरे हुए किसानो पर भी अंग्रेज़ो द्वारा गोली या चलाई गई।इस टेक्स विरोधी सभा मे मोतीलाल तेजा वतजब सम्बोधन कर रहे थे तब तेजा वत के हाथ मे गोली लग गई।इन्हे बचा ने के लिए घोड़े पर बैठा कर जंगल मे छुपा ने की व्यववस्था की गई थी।जालियावाला बाग की घटना और पाल -डढ़वाल की घटना इसकी सम्पूर्ण प्रतिकृति है।स्थान और समय का फर्क है।कांति का मुद्दा अलग था।
अंग्रेज़ो ने कुए मे पड़ी हुई शबों की हददिया भी निकलवा ली थी। सबूत का सम्पूर्ण नाश किया गया था। जिस कुए मे लोग अपनी जान बचाने के लिए कूद पड़े थे उस कुए को बंध कर दिया था।
यह घटना कभी भी प्रकाश मे आई हुई नहीं है ।किन्तु प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की निगाह से आदिवासियो की यह घटना का टेब्लो गणतन्त्र परेड 2022 मे रखने से यह समाचार मीडिया के माध्यम से न्यूज़ स्टोरी के रूप मे प्रकाशित होने से पूरे भारत देश को यह घटना की जानकारी प्राप्त हुई. गीत के रूप मे गाई जाती यह घटना दंत कथा बनकर रह गई है।शिक्षित लोगो ने यह गीतो को गुजराती भाषा मे पहचानकर और आसपास के गांवो से जानकारी प्राप्त हुई।पल गाँव की प्राथमिक स्कूल मे वन विभाग की मदद से एक हजार वृक्ष उगाकर यहा शहीद स्मारक बनाया गया है।
विजयनगर तहसील के वांकड़ा गाँव के अग्रणी किसान ने यह घटना की सभी विगत इकट्ठी की है।इनहोने यह घटना की जानकारी आदरणीय नरेंद्र मोदी साहब को भी की है।यह शहीद स्मारक मे दिनांक 22 जून 2003 के दिन एक स्मृति वन उद्घाटित किया गया।यह घटना की साक्षीरूप याक़ूब भाई पीताम्बर घोवरा और वांकड़ा गाँव के नेमजी सुकाजीनिनामा का शाल और प्रसशती पत्र से अवार्ड देकर सनमानित किया गया।
यह घटना को पाल-चितरियाके हत्याकांड के रूप मे भी जाना जाता है।साबर कंथा के मुख्य मथक हिम्मत नगर से 85 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।विजयनगर को कुदरत ने अप्रतिम सौन्दर्य दिया है।विजयनगर पोलो का जंगल मंदिर के रूप मे जाना जाता है।विजयनगर भिलोडारोड पर पाल गाँव स्थित है।जिसने अंग्रेज़ो का अत्याचार को सहन किया है।जिनहोने अत्याचार सहन किया है,जिनहोने अत्याचार का विरोध जताया है,शहीदी अपना ली है इनकी याद मे 7 मार्च 1922 का दिवस ब्लेक डे साबित हुआ ।वनवासियो पर अंग्रेज़ो ने अधिक टेक्स डाला था,उसका विरोध जताने के लिए दलगढ़ मे एक सभा मिली थी।यह सभा मे पोशीना के हजारो आदिवासी गरीब किसान दौड़ पड़े थे।यह कानून रद करने के लिए भाषण शुरू हुआ की तुरंत ही बंदूक मे से अंधाधुंध गोली या छूटने लगी।यह गोलीबारी को रोकने के लिए बालेटा गाँव की एक आदिवासी महिला सोनी बहन गमार ने सुलेह करने के लिए अपनी साड़ी अंग्रेज़ो और वन वासियो के बीच फेकी गई।आदिवासी रीति रिवाज के मुताबिक यदि जो कोई स्त्री अपनी साड़ी दो पक्षो के बीच फेंके तो यह संघर्ष वही अटक जाता है।वनवासियो की हिम्मत को दुर्बल बनाने के लिए अंग्रेज़ो ने हाहाकार मचा दिया।राजस्थान के खेरवाड़ा से आई हुई अंग्रेज़ पलटन ने अंधाधुंध गोलीबारी करके 1200 लोगो को मौतके हवाले कर दिया।
यह घटना की नोध इतिहास मे की नहीं गई यह दुख की बात हाए।उस समय के इतिहासकारो ने यह गलती जानबूझकर या अनजाने मे की गई हो एसा लगता है।उस समय अखबार न के बराबर थे।यह मान सकते है,किन्तु अंग्रेज्प के अत्याचार के सामने यह बात बाहर नहीं आई।यह घटना की जानकारी आदिवासियोने अपने गीतो मे दी है।लग्न गीतो मे भी ये घटना का विवरण दिया गया है।ये सभी गीत आदिवासियो की शादियो मे गए जाते है।
“पाले कोके आटो वानिया मोतिया रे “बे बे चार रोटा मोतिया रे “
“गासु पाल चितरिया की नल मे मवा, भेर हांशु आपड़े भोग नथी आपवों “
आदिवासी शिक्षित लोगो ने इसे गुजराती मे रुपांतरित करके गीत संग्रहीत किए गए है।ये विस्तार के दाता,पोशीना,दातोड़ ,कोडियावड ,आखोदु,चीथोडा ,दातोली,वलरेज,परवट,और बालेठा सहित के गांवो मे इस हत्याकांड मे शहीद हुये लोगो की चौथी या पाँचवी पेढ़ी बसी हुई है।इस घटना का पाल गाँव मे स्थित पाल पेलेस का दरवाजा आज मुक साक्षी बनकर खड़ा है।आज भी अंग्रेज़ो ने की गई गोलीबारी के निशान इस दरवाजे पर देखने को मिलते है।इस घटना को एक्सो वर्ष होने का अंदाजा है।गोलीय लोगो के छिने को चीरकर दीवार को जा टकराई थी उसके निशान भी है।पाल घटना की यह घटना विवाद मे है।एक वरिष्ठ पत्रकार के पास उस समय का अंग्रेज़ सरकार द्वारा लिखा गया गेजेट है।जिस मे यह घटना का उल्लेख नहीं किया गया।एक पक्ष यह भी मान रहा है की इस प्रकार की कोई घटना यहा घटी नहीं है.कुछ भी हो किन्तु विजयनगर के इस स्मारक की मुलाक़ात लेने जेसी है।यह ऐतिहासिक घटना का टेब्लो को गणतन्त्र दिवस की परेड 2022 मे इसे स्थान मिला है।यह गौरव की बात है।
डॉ गुलाब चंद पटेल
शिक्षणविद साहित्यकार
सामाजिक कार्यकर
अध्यक्ष महात्मा घनधि साहित्य सेवा संस्था,गांधीनगर
मो.9904480753 मो 884979437
Email: dr. gulab. 1953@gmail.com
patelgulabchand19@gmaildotcom