
थामे हाथ उठ खड़े हुए हम,
निशदिन आगे बढ़ते है।
दिया हमको साहस का दम,
पिता के संग हँसते है।।
प्रथम गुरु माता-पिता है,
गुरु-ज्ञान से हमको भरते है।
जीवन भी सफल हो जाता है,
हर पग-पग संग चलते है।।
जीवन का आधार है पिता,
संस्कारो की सिख देते है।
कुटुम्ब प्रेम, प्यार है पिता,
पल्लवित आशाएं पूर्ण करते है।।
संग बच्चों के बच्चे बनते,
जीवन-ज्ञान हमें सिखाते है।
अखण्ड हौसलों से गुनगुनाते,
पथ-प्रदर्शक बन जाते है।।
मधुर मिठास मुस्कान है पिता,
सबको रिश्ते सिखाते है।
आन बान शान है पिता,
सही राह सबको दिखाते है।।
✍️मेरी स्वरचित और मौलिक रचना
डॉ.विनोद कुमार परिहार शुभ
मुण्डारा,बाली, पाली
राजस्थान