गिर-गिर छोटी चींटियांँ , कभी न मानीं हार।
कोशिश करके चढ़ गईं , उच्च शिखर दीवार।।
उच्च शिखर दीवार , मार्ग अति ही दुष्कर था।
मन में दृढ़ विश्वास , लक्ष्य सबसे ऊपर था।।
ज्यों-ज्यों गिरो जुगेश,बढ़ाओ साहस फिर-फिर।
धीरज संबल साथ , बढ़ो सत्पथ तुम गिर-गिर।।
——जुगेश चंद्र दास
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