
शरद पूर्णिमा की
खूबसूरत है रैना,
पूर्ण चंद्र से सुशोभित
है ये आसमाॅं।
धवल चाॅंदनी,शरद पूर्णिमा
बरस रही है सुधा झरझर,
आओ सब मिलकर,
अंजुरी भर उसको पी लो।
मुरलीमनोहर ने इस शुभ दिन,
महारास रचाया था।
मधुर बाॅंसुरी की धुन पर,
गोपियों को नाच नचाया था।
माता लक्ष्मी भी पियूष बेला में,
आज भ्रमण को निकल पड़ी।
सब के दुख निवारण कर,
सकल कष्टों को हरती हैं ।
पूनम की रात मनोहर,
उजियारे के गीत सुनाती है।
दिवस उष्ण अब ढल गया,
आ गया है अब मौसम शीत।
निशा नवेली ने पहन लिया,
नौलखा चंद्रहार को,
झिलमिल तारक ओढ़नी,
फिरे गगन बिच कर श्रृंगार।
(स्वरचित)
_डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर,बिहार