दो दो संस्कृति के बीच मे पीसता सा जीवन है-“राजमाला आर्या”

त्योहारों का देश मेरा ,,बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों पर निर्भर है ।
माँ कहती आज अखाती तीज है ।
टारगेट पुरा करना कंपनी का आदेश है ।
पाश्चात्य माने ना सिवाय क्रिसमस के छुट्टियाँ,,
हमारे यहाँ तो हर दिन तिथि ओर त्योहार है ।
रहा साहा छिन लिया हमसे हमारा संयुक्त परिवार है ।
एकल परिवार मे जिम्मेदारीयों का कांधों पर हमारे अधिक भार है ।
संयुक्त परिवार मे कितने हाथ थे हमारे ,,
गृहणियाँ भी मिलकर निपटा लेती थी काम सारे ।
पूजा -पाठ घर के बुजुर्गों की जिम्मेदारी थी ,,
रसोई बहु बेटियों की हिस्सेदारी थी ।
घर के पुरूषों को सिर्फ बाहर की जिम्मेदारी थी ।
संस्कार ओर दुलार बच्चे पाते थे ।
अपनी बालपन की शरारतों से घर महकाते थे ।
आज सब कुछ पाश्चात्य ने छिन लिया है ।
परेशान सी गृह लक्ष्मी ओर हैरान से गृहस्वामी है ।
बच्चे ताकते दिनभर मोबाइल मे ,,
मोटा चश्मा चढ़ा आँखो पर आज का बचपन है ।
रंगोली सजाये कैसे आँगन मे बिटिया ,,
सिलेबस का कांधों पर लदा बोझ है ।
सोलह श्रृंगार से सजे कैसे लक्ष्मी घर की ,,
उसके हाथों मे भी दो जगह की बागडोर है ।
एक कार्य क्षेत्र ओर दुसरा घर उसकी जिम्मेदारी है ।
सफाई करें दिवाली की कैसे कोई,,
कैसे त्योहार मनाये ?
दो -दो संस्कृति के बीच मे झूलता जीवन है ,,
बस आपा -धापी मे ही खपता जाये ।
वो सकुन कहाँ अब संयुक्त परिवार ओर कृषि प्रधान भारत का !
मल्टीनेशनल कंपनियों मे बेटा बेटी विदेश बस जाये ।
माता-पिता रह गये अकेले कैसे कोई त्योहार मनाये ?
तकते रहते राह अपनों की आशा का दीप जलाये ।
कंपनी के बड़े बड़े पैकेज ने जीवन की खुशियों को उजाड़ा है ।
ब्रांडेड के चक्कर मे आज हमने रिश्तों को खोया है ।
गाँव के सुकून ओर घर आँगन की रौनक व उत्सवों को पाश्चय ने देखो किस तरह निगला है !
दो -दो संस्कृति के बीच मे पीसता सा जीवन है ।।
राजमाला आर्या ✍🏻
खंडवा मध्य प्रदेश से

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