
कौन बताता है समुंदर का रास्ता नदी को, वो मशवरा नहीं लेते , जिन्हें मंज़िल का है जुनून ।
और मंज़िल पा कर ही फिर उन्हें मिलता है सुकून।
और मंज़िल पर पहुँचने से उन्हें नहीं रोक सकता कोई कायदा या क़ानून ।
यही है उनकी असलियत, मंज़िल पाने की उन में है वहशियत, इस के लिए चुका सकते हैं वो कोई भी क़ीमत।
तभी तो उनका जुनून है बेशक़ीमती, काबिले तारीफ़ है उनका उत्साह, कहना ही पड़ेगा, वाह भाई वाह!!
और मंज़िल पाने पर उनका ज़मीर उन्हें देता है शाबाशी।
हर मुश्किल को नज़रंदाज़ कर, आख़िर जीत ली उन्होंने बाज़ी।
ऐसे जाबाज़ों को करता हूँ मैं सलाम, ख़ुदा भी मेहरबान होकर बना देता है इनके बिगड़े काम।
और सच पूछो तो आसान नहीं है मंज़िल को पाना, लेकिन ये ना रुकते हैं, ना झुकते हैं।
बस चलते रहते हैं, चलते रहते हैं, कभी भी ना थकते हैं।
इन्हें ही सब कहते हैं, मेहनती इंसान, हैं सरफ़रोश!!
जब तक ना मिले मंज़िल , ये प्रयत्न करते रहते हैं———और मंज़िल मिल जाने पर खूब जश्न मनाते हैं, हो जाते हैं मदहोश !!!
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।