फिर कभी-“डाॅ०अनिल गहलौत”

फिर कभी आदर्श पाला, तो मुझे आपत्ति होगी।
बुद्धि पर डाला न ताला, तो‌ मुझे आपत्ति होगी।।

मैं मनुज हूँ और दुर्बलता सहज पहचान मेरी।
तुम बनीं यदि देवबाला, तो मुझे आपत्ति होगी।।

तुम सँभालो और सबको, तो मुझे इसमें खुशी है।
किंतु यदि मुझको सँभाला, तो मुझे आपत्ति होगी।।

और भी इस क्रूर जग में, हैं मुझे उपदेशने को।
शब्द भी तुमने उछाला, तो मुझे आपत्ति होगी।।

इस शरद् की पूर्णिमा में शशि बनो छोड़ो उदासी।
हो गया यदि व्योम काला, तो मुझे आपत्ति होगी।।
डाॅ०अनिल गहलौत

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