
किसी ने ग़ालिब के ये शब्द लिखे , किसी ने ग़ालिब ने कहा , जो शराब पीते हैं , उनकी दुआ क़ुबूल नहीं होती ।
ग़ालिब बोले , जिन्हें शराब मिल जाए , उन्हें दुआ की ज़रूरत नहीं होती ।
जब मैंने इस बात पर किया चिंतन और किया विश्लेषण , तो मेरा जवाब कुछ
इस तरह था , दुआ सब की होती है क़ुबूल ,हालाँकि शराब पी कर वो बाशिंदे कर रहें हैं भूल ।
सोचो तो क्या मिलता है शराब पी कर , चंद लम्हों का मज़ा , और जीवन भर की सज़ा ।
ये मय के प्याले , एक से दो , दो से चार , और फिर पड़ जाती है पीने की आदत और बुरी है ये फ़ितरत ।
कहने की ज़रूरत नहीं, हमने परिवार तबाह होते देखे हैं इस नामाकूल शराब के कारण , एक बार पकड़ ले तो फिर ये शराब मुश्किल से छोड़ती है दामन ।
वो पैसा जो परिवार में बीवी बच्चों के आ सकता है काम , वो शराब के कारण हो जाता है बर्बाद , ये शराब चीज़ है बड़ी नामुराद ।
और इन्हें दुआ की ज़रूरत नहीं , इस बात से भी नहीं हूँ मैं सहमत ।
अपेक्षा इसके , इन पर तो निश्चित होनी चाहिए खुदा की रहमत ।
उनकी ये आदत छुड़ाने में खुदा हो सकता है मददगार , खुदा ही ला सकता है इनकी जिंदगानियों में सुधार ।
यारो , ज़रा गम्भीरता से सोचो , क्या इस शराब ने किया है कभी किसी का भला ?
मेरे विचार में जिंदगानियों का नाश कर देता है ये नशा ।
कितनी पीड़ा होती है जब जिम्मेदारियाँ सम्भालने वाला मर्द घर आता है तो लड़खड़ा रहे होते हैं उसके क़दम !
और रोज़ तोड़ता है और रोज़ लेता है वो दोबारा शराब ना पीने की क़सम !
और अफ़सोस ये कि वो इस क़सम पर कभी भी नहीं करता अमल , ये पीना पिलाना एक रोग बन जाता है और परिवार पर आ जाती है मुसीबत , बद से बदतर हो जाती है उनकी हालत ।
तो मेरे मेहेरबानो ,कभी कभी शराब पीना , ये तो है जायज़, लेकिन इसकी आदत डाल लेना , ये है नाजायज़ ।
कश्मकश यही है कि अक्सर जो लोग इस शराब के चक्रव्यूह में फँस जाते हैं , तो फिर इस चक्रव्यूह से बाहर निकल ही नहीं पाते हैं !
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।
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