चाल अभिनव, ढाल अभिनव, आपका है हाल अभिनव।
रंग गिरगिट का चढ़ा है, दिव्य मोटी खाल अभिनव।
आप गंगादास भी हैं, आप जमुनादास भी है।
हों वहीं का रूप धर लें, आपकी खड़ताल अभिनव।।
माल चीरा थे पकड़ में, किंतु निकले घाघ पूरे।
बच गए पाला बदलकर, हो न बाँका बाल अभिनव।।
व्यर्थ हो जाती करारी, चोट हर तलवार की ही।
हाथ में चालाकियों की, आपके है ढाल अभिनव।।
आप आए वोट लेने, तब अलग थे हैं अलग अब।
बन गए मंत्री हुई लो, आपकी अब चाल अभिनव।।
आप चारा भी न डालें, आ फँसे मछली स्वयं ही।
आपकी बंसी अजब है, आपके हैं जाल अभिनव।।
देश की आस्तीन में कुछ, हैं छिपे फुफकारते जो।
और फिर भी पुज रहे हैं, वे विषैले व्याल अभिनव।
है विधर्मी झूठ लटका दिख रहा उलटा सभी को।
सत्य ने जब रूप धारण कर लिया विकराल अभिनव।।
जब पड़ी कानून में दम, हो गई पतलून गीली।
बाहुबलियों के फटे मुँह, था कभी भोंकाल अभिनव।।
—-डाॅ०अनिल गहलौत