
सिया राम के दूत तुम, अब लो मुझे उबार।
विपदाओं से घिर गया, जीवन होता भार।।
आधि-व्याधि से व्यस्त हूँ, संकट में है प्राण।
जैसे त्राणे बालपन, वैसे ही अब त्राण।।
चौपाई:-
मैंने तुमको सदा ही माना।
हे बजरंगबली, भगवाना।।
कीर्ति तुम्हारी सुनते आते।
नाम तुम्हारा जपते जाते
बच्चों के तुम इष्ट दुलारे।
शक्तिमान बड़ देव हमारे।।
जब हम कभी राह में जाएँ।
और रोंगटे खड़े हो जाएंँ।।
जय- बजरंगी! तुम्हें बुलाएँ।
आँख मूँद त्रिपुटी में लाएँ।।
पैर दबा आगे बढ़ जाएँ।
गदा सहित तुमको तब पाएँ।।
नदी सघन-वन कूप भुलाने।
भूत प्रेत सब पीठ दिखाने।।
आंँख मींच जब तुमको ध्याया।
अंधकार में उजला पाया।।
याद हमें वो दिन भी आए।
जब थे हमरे सदा सहाए।।
बचपन में जब जी घबराता।
अनायास सुधि तुम्हरी आता ।।
हर कक्षा में पास कराए।
बिना बुद्धि को बुद्धि-दिलाए।।
कठिन प्रश्न से हमें उबारे।
जब हम तुम्हरे नाम पुकारे।।
जब कुछ प्रश्न समझ ना आये।
सूझी हमको युक्ति- उपाये।।
ऐसे अक्षर हमने बनाए।
देख परीक्षक चक्कर खाए।।
उसको भी जब समझ न आता।
बिना पढ़े नंबर दे जाता।।
अक्का बक्का तीन तिलक्का।
गुल्ली-डंडा चौक्का छक्का।।
तुम्हरे बल हम मारा करते।
हर-अखाड़ा धोबी पटक्का।।
गेन्तड़ी और चिभ्भी डाड़ी।
आत-पात के बड़े खिलाड़ी।।
कौड़ी, कबड्डी कैरम, लूडो।
कहीं शतरंज, कहीं पे खो-खो।।
जगह-जगह जो जीता पाया।
हे हनुमंता! तुमने दिलाया।।
दोहा:
अब भी रखिए पवन-सुत, हृदय हमारा ध्यान।
बचपन बीता खेल में, कठिन समय अब आन ।।
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सियावर रामचन्द्र की जय!
पवनसुत हनुमान की जय!
उमापति शंकर भगवान जय!
——————————————🖍️ बृजेश आनन्द राय, जौनपुर
प्रकाशन के लिए धन्यवाद रजनी जी!