छन-छन चलती है,
इत-उत लखती है,
थोड़ा-थोड़ा रुकती है,
बात क्या जानिए।
गोरी-गोरी भोरनी है
हृदय की चोरनी है
रोक-टोक करने से
रूठेगी मानिए।
बात करो दूर ही से,
हँसेगी जरूर ही से,
दिखती कठिन पर,
सरला जानिए।
थोड़ा भी गुमान नहीं,
रूप-अभिमान नहीं,
हंँस-हँस प्राण लेती,
कला है मानिए।
—–🖍️ बृजेश आनन्द राय, जौनपुर