
जीवन का पहला प्रेम और प्रेम पत्र ,
ढूंढती; पर नहीं मिली कही अन्यत्र !
छिपा है राज सीने में,
सच्ची मोहब्बत मीने में ….!
कुछ अटपटा कुछ मसालेदार शब्द ,
कुछ अनसूने कुछ जायकेदार अर्थ ,
महक गुलाब-सी, आती है अभी भी ,
है इश्क की तरस भी और तड़प भी ।
न जाने कितनी बार पढ़ी ,
फिर भी दिल ना भरा ,
सोते-जागते, खाते-पीते ,
प्रेम ही प्रेम से है भरा तरा !!
बहुत उछलता है दिल अब भी ,
पढ़ती वह प्रेम का पत्र जब-जब भी …..,
अजीब सुकुन मिलता है ,
आंसू न जाने क्यूँ अनवरत गिरता है ????
पहले खो जाती हूँ मीठी यादों में ,
रूह कसता मुझे अपनी बाहों में ……
सुधबुध खोई रहती सुखद अनुभूति ……
हाय!
फिर क्यूँ याद आती उसकी नियति ?
अगाध खुशी में पड़ जाता अक्सर खलल ,
फिर पिघलकर चट्टान दिल हो जाता तरल ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई