क्या कसूर है, हमारा
क्यो इस समाज ने हमें ,अब तक ना है अपनाया
क्यों है, हम अपनों से भी पराए
क्यों कहे जाते हैं, कि
हम दूसरों के घर से हैं आए
क्या कसूर है, हमारा ?
क्यों नहीं हूं? मैं सबको गवारा
सब की खुशियों को ढूंढने में
खुद को कहीं हम छोड़ आए
रिश्ते निभाते- निभाते
खुद से ही मुंह मोड़ आए
रिवाज दुनिया के खातिर
गैरों को अपना बनाने
अपनों को हम छोड़ आए
फिर भी आज तक हम सारी खुशियों के
हिस्सेदार ना बन पाए
क्या कसूर है?हमारा
क्यो शुरू से ही इस समाज का बोझ
हम अपने सर पर उठाते चले आ रहे
कभी शान तो ,कभी आन की खातिर
खुद की बलि हम चढ़ते आ रहे हैं
फिर भी हम धिक्कारे है, जाते
क्यों ??
क्या कसूर है हमारा
क्यों नहीं हूं मैं सबको गवारा।
तमन्ना✍️