
महाराष्ट्र राज्य का अहमदनगर जिला का मुख्यालय सीना नदी के पश्चिमी तट पर अहमदनगर शहर औरंगाबाद से 114 किमी, पूणे से 110 किमि दूरी पर स्थित है।अहमदनगर शहर की स्थापना अहमद निजाम शाह बहरी द्वारा 1490 ई. में की गयी थी। अहमदनगर पर्यटन क्षेत्र में शिरडी में साईं बाबा मंदिर , दक्षिण मुखी हनुमानजी , शिंगणापुर में भगवान न्यायदेव शनि मंदिर , अहमदनगर में अहमदनगर किला, आनंद धाम, मुला बांध, चांदबिबी महल , रंधा झरना , अमृतेश्वर मंदिर है। अहमदनगर किला – अहमदनगर किला का निर्माण अहमदनगर सुल्तानत निजाम शाही राजवंश के सुल्तान मलिक अहमद निजाम शाह प्रथम ने आक्रमणकारियों के खिलाफ शहर की रक्षा के लिए किले का निर्माण करने का आदेश दिया था । अहमदनगर किले की 18 मीटर ऊंची दीवारें 22 बुर्जों द्वारा समर्थित द्वार; तीन छोटे सैली बंदरगाह; ग्लासिश; और पत्थर से दोहराई गई खाई है । शाही राजवंश के राजकुमारी चांद बीबी ने मुगलों से किले का बचाव किया था । बादशाह औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. में होने के बाद, अहमदनगर किला 1724 में निजाम, 1795 में मराठों और 1790 में सिंधियास में पारित हो गया था । अहमदनगर किला ब्रिटिशों द्वारा 1803 ई. में लिया गया था । एंग्लो-मराठा युद्ध। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, अंग्रेजों ने अहमदनगर किले में जेल बनाया था । जवाहर लाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद, सरदार पटेल इत्यादि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभिन्न राजनयिकों को किले में हिरासत में लिया चांद बीबी मकबरा – अहमदनगर शहर से 13 किमी दूर स्थित पहाड़ी की श्रंखला पर बीजापुर की रानी चांद बीबी मकबरा व सलाबत खान का मकबरा है । निजाम शाह राजवंश के दौरान चांद बीबी और सलाबत खान प्रमुख थे । आनंद धाम – जैन तीर्थ केंद्र, आनंद धाम जैन धार्मिक संत श्री आनंद ऋषिजी महाराज का विश्राम स्थल है। उनकी शिक्षाएं प्यार, अहिंसा और सहिष्णुता में गहरी थीं। वह नौ भाषाओं में कुशल थे और उन्होंने मराठी और हिंदी में बड़े पैमाने पर लिखा था। आनंद धाम का निर्माण श्री आनंद ऋषिजी महाराज की स्मृति में 1992 में हुआ था। इसके धार्मिक महत्व के अलावा आनंद धाम अपने स्थान और कमल के आकार के स्मारक के लिए प्रसिद्ध है।भेंडदारा झील रंध ग्राम का प्रवरा नदी पर निर्मित भंवर बांध व विल्सन बांध भूस्तर से 150 मीटर ऊपर स्थित है। पर्वत श्रृंखला पर कालु बाई मंदिर , हरिशचंद्रगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है। रंधा फाल्स प्रवाड़ा नदी पर झरना 170 फीट की ऊंचाई से एक खूबसूरत घाटी में गिरता है।
अमृतेश्वर मंदिर – भंवरारा से 17 किमी की दूरी पर रतनवाड़ी ग्राम में अमृतेश्वर मंदिर इगतपुरी क्षेत्र के रतनवाडी गांव में प्रवरा नदी तट पर स्थित अमृतेश्वर शिव मंदिर पत्थर नक्काशीदार मंदिर 9वीं शताब्दी ई. में शिलाहारा राजवंश के शासकों द्वारा निर्माण गया था। राजा झांज द्वारा निर्मित 12 शिव मंदिरों में से एक है। रतनगढ़ किला शिव मंदिर से दूरी पर स्थित है ।अमृतेश्वर मंदिर का निर्माण हेमाडपंथी वास्तुकला शैली में मुख्य मंदिर पर सुंदर चट्टानों काले और लाल पत्थरों के साथ 12 स्तंभों वाला मंडप में खूबसूरत नक्काशीदार मूर्तियां और फूल हैं। रतनवाडी पहाड़ियों पर किसी न किसी सड़कों के कारण इस मंदिर में सड़क से यात्रा करना बहुत मुश्किल है। रतनवाड़ी को आर्थर झील द्वारा भंवरारा से अलग किया गया है। रतनवाडी गांव भेदारा से नाव से संपर्क किया जाता है।
शिरडी – अहमदनगर जिला मुख्यालय अहमदनगर से 82 किमी की दूरी पर शिरडी में स्थित शिरडी में साईं बाबा मंदिर है । साईं बाबा को 20 वीं शताब्दी भारत के महानतम संतों के रूप में जाना जाता है। साईं बाबा 16 वर्ष की उम्र में शिरडी गए और 1918 में उनकी मृत्यु तक वहां रहे थे । साईं बाबा ने शिरडी गांव को भक्तों के लिए पवित्र तीर्थ स्थल में बदल दिया था । शिरडी में साईं बाबा ने अपनी ‘समाधि’ या अंतिम निवास प्राप्त किया। शिरडी मंदिर परिसर में लगभग 200 वर्ग मीटर का क्षेत्र में गुरुस्तान, समाधि मंदिर, द्वारकामाई, चावड़ी और लेंडी बाग हैं। शिरडी में साई मंदिर , मारुति मंदिर, खंडोबा मंदिर, साई विरासत का स्थान हैं।
शनि शिंगणापुर – महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर ज़िले का स्थित शिंगणापुर में भगवान सूर्य की भार्या संज्ञा माता की छाया के पुत्र न्याय का देवता शनि को समर्पित शनी देव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। शिंगणापुर का निर्देशांक: 19°24′00″N 74°49′00″E / 19.4000°N 74.8167°E न्याय देव शनि की स्वयंभू मूर्ति 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति काले रंग संगमरमर के चबूतरे पर धूप में विराजमान है। शनिदेव की काले संगमरमर के रूप में अष्ट प्रहर धूप , आँधी , तूफान या जाड़ा , ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव के निवासी घर में दरवाजा , कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता है । घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं वल्कि शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है। मूल्यवान वस्तुएँ, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते , पशुओं से रक्षा के लिए बाँस का ढँकना दरवाजे पर लगाया जाता है। शिगनापुर में कभी चोरी नहीं हुई। यहाँ आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते है। शनिवार को या अन्य दिन में श्रद्धालु शनि भगवान की पूजा, सरसो तेल से अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहाँ आरती होती है। शनि जयंती पर ब्राह्मणों को बुलाकर ‘लघुरुद्राभिषेक’ कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है। शिरडी से शिंगणापुर की दूरी 40 किलोमीटर पर अवस्थित शनि शिंगणापुर गांव के चारों ओर पर्वतमालाएं हैं। पानस नदी में 18 वीं शताब्दी में मूसलाधार बारिश बाढ़ आने के क्रम में शिंगणापुर स्थित बेर के पेड़ के साथ अटक कर रुक जाने के बाद भगवान न्यायदेव शनि की के स्वयम्भू की काले पाषाण की मूर्ति प्रकट हुई थी । बाढ़ का पानी उतरने पर शिंगणापुर गांव के निवासी मवेशी चराने के लिए निकल पड़ने पर काले रंग की बड़ी शिला दिखाई दी थी । शिंगणापुर निवासी ने छड़ी से शिला को स्पर्श से शिला में से रक्त बहने लगा तथा बड़ा सा छेद हो गया था । शनि शिला में से रक्त आता देख ग्रामीण डर गए और अपने मवेशी वहीं छोड़ कर भाग खड़े हुएथे । मवेशी चराने वाले गांव पहुंच कर सारी घटना बताई थी । शनि पाषाण का चमत्कार को देखने के लिए ग्रामीण का जमघट लग गया था । उसी रात व्यक्ति को शनिदेव ने स्वप्र में दर्शन दिए और कहा मैं तुम्हारे गांव में प्रकट हुआ हूं, मुझे गांव में स्थापित करो। अगले दिन उस व्यक्ति ने यह बात गांव वालों को बताने के बाद बैलगाड़ी लेकर वे मूर्ति लेने पहुंचे। ग्रामीणों ने मिलकर भारी-भरकम मूर्ति को बैलगाड़ी पर रखने का प्रयास किया परन्तु मूर्ति टस से मस न हुई। कोशिशें व्यर्थ होने पर वे सब गांव वासी लौट आए थे । उसी व्यक्ति को शनिदेव ने अगली रात पुन: दर्शन देकर कहा कि रिश्ते में सगे मामा-भांजा हों, वे मुझे उठाकर बेर की डाली पर रखकर लाएंगे तभी मैं गांव में आऊंगा। अगले दिन यही उपक्रम किया गया। सपने की बात सच निकली। मूर्ति को आसानी से गांव में लाकर स्थापित कर दिया गया। शिंगणापुर में स्थापित शनिदेव की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे है। भगवान शनिदेव को किसी का आधिपत्य मंजूर नहीं है। शनिदेव का आज जहां चबूतरा एवं उत्तर दिशा में नीम का विशाल वृक्ष है। भगवे कपड़े पहन कर श्रद्धालु तेल, काले तिल व काले उड़द चढ़ाकर पूजा करते हैं। विशेष कुआं के जल से शनि भगवान को स्नान करवाया जाता है । ज्योतिष शास्त्र में शनि को पापग्रह की संज्ञा दी गई है। शनि देव बारह राशियों को प्रभावित करते हैं। शनिदेव जी का तांत्रिक मंत्र ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स:शनये नम: अथवा ऊँ शं शनैश्चराय नम: है। शनि के मंत्र का 23 हजार जाप किया जाता है। भगवान शिव के शिष्य एवं भगवान सूर्य की भार्या छाया के पुत्र न्यायदेव शनि का नाम कोणस्थ , पिंगला , बंधु ,कृष्ण, रौदरांतक , यमाग्रजं , सौरी , शनैश्चर ,मंद ,पिप्पलाद ,निलकाय है । शनि का निवास पीपल और अंजीर वृक्ष , प्रिय राशि तुला , पुत्र कुबेर और पुत्री तपस्विनी , पत्नी गंधर्व राज चित्ररथ की पुत्री नीला ,रत्नमणि और मंदा है । शनि का जन्म भद्र पद कृष्ण अमावस्या को हुआ था ।रोमन ग्रीक में शनि की पत्नी ऑप्स को धन की देवी और लुआ को सौहार्द एवं प्रेम की देवी के रूप में उपासना की जाती है । अहमदनगर जिले के नेवासा तलूक के शिंगणापुर गढ़ के उत्खनन से प्राप्त हुआ था । शिंगणापुर स्थित न्यायदेव मूर्ति के समक्ष हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है ।