बसंत ऋतु आते ही आशिक़ों के दिलों में आरज़ुएँ मचलने लगतीं हैं-“निरेन कुमार सचदेवा”

किसी ने हमें कहा अब मौसमे बसंत आ रहा हाँ, क्या ख़्वाहिशों में आ रहा है उछाल, क्या दिल की धड़कनें मचा रहीं हैं धमाल?
सावन के मौसम में , क्या आरज़ुओं के लगे हुए हैं मेले , यकीनन अब नहीं रहना चाहोगे तुम अकेले।
हम हँस दिए , मुस्कुरा दिए , कहा , अगर दिल में ख़ुशी है, मन में है सुकून तो हर वक़्त मौसमे बसन्त है, ख़ैर तहे दिल से हम इस मौसम का करते हैं शुकराना।
सावन के आते ही आशिक़ों का बदल जाता है नज़राना , बहुत रंगीन हो जाता है उनका ज़माना।
बसन्त के आने पर वातावरण हो जाता है मनमोहक भी , रोचक भी।
छम छम सावन की फुहारें, मदमस्त हो जाते हैं मज़ारें।
हवाओं में हो जाता हो बूँदों का मिश्रण, और भव्य होती है हरियाली , तो जीवन हो जाता है सम्पूर्ण।
इस ऋतु में पत्तों के बदलते रंग भी होते हैं बहुत दिलकश, और रंग बिरंगी महकते फूलों की क्यारियाँ भी करती हैं अचंभित।
जवाँ दिलों में तमन्नाएँ भी फिर उठतीं है असीमित।
इस बसन्त ऋतु में कुदरत की ख़ूबसूरती भी होती है चरम सीमा पर, और आशिक़ाना दिलों पर भरपूर होता है असर।
इधर आयी बसन्त ऋतु , उधर आयीं बरसातें, ये क्या नीले आसमान में दिख रहा है इंद्रधनुष।
और ये तो हद ही हो गयी , ऐसा लग रहा है कि इन्द्रदेव झूला झूल रहे और दिख रहें हैं बहुत प्रसन्न्न और खुश।
आशिक़ दिलों पर छाई हुई है दीवानगी, इन सावन के बरसातों में भीगने का अलग ही है मज़ा।
एक महबूब ने अपनी महबूबा से कहा, आज बखूबी दिखा दो जुनूनियते इश्क़ की अदा….
आज चूड़ी, पायल, बिंदिया , काजल , गजरा सब पड़े रहने दो……खींच के बाँधो ज़ुल्फ़ों को और एक लट गाल पे रहने दो।
और बेपनाह , बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ मैं तुम से , आज मुझे ये बार बार कहने दो …..
बसन्त के मौसम में ना चाहिए ना कोई ज़ेवर, और ना कोई आभूषण।
बस एक मुस्कुराहट , महबूबा की भीगी गालों पर ला देती है अजब सी सजावट।
एक राज़ की बात बताऊँ, इस मौसम की फ़िज़ाओं में होती है अहसासे प्रीत की मिलावट।
सावन के झूलों पर झूलना , ये भी अलौकिक है अनुभव, इसलिए तो इस मौसम का हमारी ज़िंदगानियों में है इतना महत्व।
इस मौसम में हर बाशिंदा कुछ इस तरह चाहता है भीगना, कि उसके अंग अंग से प्यार का अमृत रस छलके, और फिर वो उभरे कुछ और सँवर के , कुछ और निखर के।
सावन की बारिशों का और बसन्त ऋतु का बहुत घातक सिद्ध होता है मिलन, इंसान का संयम टूट जाता है, वो हो जाता है इच्छुक, और इश्के मोहब्बत के इस खेल में बन जाता है एक भिक्षुक।
अब और नहीं कुछ लिख सकता में, ये रंगीन फ़िज़ाएँ, और कुदरत की नायाब अदायें , ख़ुशी के आँसू बहने लगे हैं, ना चाह कर भी मैं हो गया हूँ बहुत भावुक।
कवि———निरेन कुमार सचदेवा
Thanks 🙏 Almighty Lord , for giving us this beautiful Planet Earth 🌍 !

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