
चाहती गर्दिश हमेशा अहमियत उसको मिले।
हम न देते अहमियत तो ये नहीं हमको मिले।
क्यों सुनाएं गर्दिशों की बात सबको हम भला,
बात सुनके ये समझतीं अहमियत इनको मिले।
हर तरफ हो गैर चाहत ज़िन्दगी को भी रहे,
जो नहीं है चीज उनकी तो भला क्यों वो मिले।
प्यार तो हम भी करें चाहा किये हर एक को,
मिन्नतें करते हमेशा वो न अब तक तो मिले।
है मुहब्बत पर कभी मिटती नही दिल की खुदी,
कौन रुसवा कर सकेगा शिद्दतों से जो मिले।
है खुशी दिल ने सजाईं ज़िन्दगी भर शिद्दतें,
चाहते हैं हर सिला दिल की खुदी भर को मिले।
ज़िन्दगी में है तसल्ली अहमियत भी दे चहल
छुप गईं सब गर्दिशें कुछ भी भला अब क्यों मिले।
स्वरचित/मौलिक रचना।
एच. एस. चाहिल। बिलासपुर।