इस भूतल पर
माँ की महिमा है अपार।
माँ चरण सा
किसी के नहीं हैं पावन चरण
माँ के हृदय सा
किसी का नहीं है विशाल हृदय।
महान महान संत
महान महान वीर
इसी के उदर से लेते जन्म।
माँ ही करती सृष्टि का सृजन
माँ ही करती सृष्टि का पालन
माँ ही देती प्रथम शिक्षा संस्कार
माँ में ही बहता ममता का सागर ।
जन्माकर संतान माँ
सहती कष्ट अपार
सब सुख अपना
संतान पर वार
करती उसकी सेवा दिन रात ।
जितना चाहती संतान प्यार
उतना देती उसे यह
हिंडोला में उसे
हलरा दुलरा
फिर गोद में ले
चहुँओर घुमा
असीम सुख देती उसे यह।
गिरकर भू पर कभी वह
जब मोती सा बहाती मोट मोट अश्रु
दौड़कर उठाती उसे यह
और उसके बहते आँसुओं को
निज आँचल से पोंछती यह।
फिर सुलाते वक्त
उसे आँचल ओढ़ा
लोरी गाती कि
आ रे निदरिया आ जो
मोर बाबू के सुता जो
आ रे कानि चिरईया आ जो
मोर बाबू के सुता जो।
संतान बुढ़ापे में
सहारा बनेगी कि नहीं
माँ विचारती नहीं यह
बस पूर्ण करती निज फर्ज।
धर्मदेव सिंह
प. बंगाल