आजकल जमाने का वो हाल चल रहा है,
देखो जिधर उधर ही बबाल चल रहा है।
गुम सभी खुदी में,खुद से ही खफा,
हां औरों से मगर सवाल चल रहा है।
निभते कहां है रिश्ते,जमाने की भीड़ में,
बिन हसरत गुमशुदगी का जंजाल चल रहा है।
खींचती कभी है सारी,होता कहीं हरण है,
शतरंज तो यहां खुद पांचाल चल रहा है।
कट जाए रात_दिन, रहमत है खुदा का,
डर,खौफ,दरिंदगी का भौकाल चल रहा है।
के बदलेगी नहीं सूरत,होगा नहीं सुर्भित चमन,
लोकतंत्र तो खुद यहां कंकाल चल रहा है।
रजनी प्रभा