अजीब सी पहेली है

अजीब सी पहेली है

अजीब सी पहेली है इन हाथों की लकीरों में , सफ़र तो लिखा है पर रास्ता नहीं लिखा।
क्या बहुत कुछ निर्भर करता है इन लकीरों पर ,पता नहीं , शायद इन का ज़िंदगी से जो है , वो वास्ता नहीं दिखा ।
बूढ़े समझदार लोग कहते हैं कि , ग़रीबी या अमीरी , बयान है इन्हीं लकीरों में ही , सच ही लगता है क्यूँकि ये लकीरें तो देखी हैं हमने फ़क़ीरों में भी !
चलो जो भी है इन लकीरों को हम बदल तो नहीं पाते , जो खुदा ने लिखा है ठीक ही होगा , उसकी मर्ज़ी है , हम उसके आगे हैं शीश झुकाते ।
या खुदा क्यूँ नहीं तू सब की लकीरों में लिख देता ख़ुशहाली , ख़ुशक़िस्मती ?
क्या तुझे अच्छी नहीं लगती ये दुनिया मुस्कुराती और हँसती ?
क्या करें , ये मौला की रज़ा हैं , वो बहतर जानता है , जो तक़दीर में रब ने लिख दिया है , इंसान वो ही मानता है ।
पर यक़ीनन सब की लकीरें फ़र्क़ हैं , शायद परवरदीगार ने छिपा कर भेजी है इन लकीरों में सब की क़िस्मत ।
कोई भीख माँग रहा है , कोई दौलत लुटा रहा है , कोई सड़क पर सो रहा है , और किसी के पास हैं महल और सल्तनत ।
लकीरें बदलना तो नामुमकिन है , लेकिन मेहनत करना तो है मुमकिन , परिश्रम कर लो , शायद सुखमय हो जायें आप के रात और दिन ।
और फिर , सिर्फ़ लकीरें हीं नहीं हैं , जिन से ज़िंदगी बदलती है , दिल और दिमाग़ से सोचो , चतुर बनो , बुद्धिमत्ता से काम लो , तो ही ज़िंदगी सही मार्ग पर ठीक से चलती
है ।

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