उपन्यास
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आकांक्षी
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भाग -1
सुबह के 5 बज रहे है। पक्षियों की चहचहाहट शुरू हो चुकी है। रात के अंधेरे को चीरकर दिन का उजाला अपनी रौशनी से धरती को व्याप्त कर रही है। सावन का महीना ऐसा लग रहा मानो हरियाली रुपी चादर ने पुरी धरती को अपनी आगोश में ढँक लिया हो। प्रकृति का यह अनुपम सौंदर्य मन एवं आँखों को अत्यंत सुख प्रदान करने वाला है।
विभा भी रोज 5 बजे बिस्तर छोड़ देती है। सबसे पहले नहाकर पूजा करती है फिर रसोई में घुस जाती है। आज भी नहाकर पूजा करने बैठी। उसका मन आज बहुत प्रसन्न है। आरती करते हुए वह कहने लगी “हे प्रभु! आपने मुझे हर खुशी दे दी है। समझ नही आता आपका धन्यवाद कैसे करूँ। ऐसे ही अपनी कृपादृष्टि हम पर बनाए रखना भगवन!” यह कहते हुए उसने प्रणाम किया फिर बच्चों के कमरे में गई तो देखा तीनों भाई बहन एक दूसरे के ऊपर पैर रखके आराम से सो रहे है।
उसके 3 बच्चे है। सबसे बड़ी आकांक्षी का आज 10 वाँ जन्मदिन है और आकांक्षी से 2 साल छोटे जुड़वा अंश और अंशिका है। तीनों बच्चे विभा की जान है लेकिन उसका आकांक्षी से अधिक लगाव है।
विभा आकांक्षी के पास जाकर उसे बड़े प्यार से देखने लगी, फिर उसके माथे को चूमने हुए कहा ” हैप्पी बर्थडे मेरी जान” ।
“थैंक्यू मम्मा,” आकांक्षी ने झट से आँखे खोलकर गले लगते हुए कहा।
-“अच्छा जी आप सोई नहीं ना”। विभा हँसते हुए उसे गले लगाकर बोली।
– मम्मा, मैनें आपको आते हुए देख लिया था, इसलिए सोने का नाटक कर रही थी।
– अच्छा ठीक है अब जल्दी से नहाकरू तैयार हो जाओ। अंश अंशिका उतो बेटा, जल्दी करो। आज घर पर पूजा है ना। पूजा के समय कोई कुछ नहीं खाएगा। उससे पहले आप तीनों नाश्ता कर लो । और आकांक्षी आप बो गुलाबी वाली ड्रेस पहनना, जो नानी लाई ‘थी, ठीक है। (विभा तीनों को देखकर बोली।)
ओके मम्मा। आकांक्षी ने कहा।
और हम क्या पहनेंगे अम्मा? अंश ने आँख मसलते हुए पूछा।
– ओहहो . अच्छा मैं ही निकाल देती हूँ आप तीनों के कपड़े। कपड़े निकालते हुए अंशिका आप ये ब्लू फ्रॉक पहनना, अंश आप ये पहन लेना और आकांक्षी ये तो आपकी पिंक ड्रेस। अब चलो उठो जल्दी से। मैं किचन में जा रही हूँ, बहुत काम है आज। आप लोग जल्दी से रेडी होकर नाश्ता करने आ जाना। ओक्क्के।
– ओके मम्मा। तीनों एक साथ बोले।
विभा किचन में गई, चाय और नाश्ता बनाने में जुट गई। विभा और वेग तो पूजा के बाद ही कुछ खाएंगे पीएंगे। मांजी को समय पर दवाई खानी है इसलिए तीनों बच्चों और मांजी के लिए चाय नाश्ता बना लिए विभा ने । मांजी भी आज जब्दी उठकर पूजा की तैयारी कर रही है। घर की नौकरानी श्यामा पूरे घर में हिरनी की तरह सामान ला- लेजा रही है।
– श्यामा ओ श्यामा (मॉजी ने आवाज दी।)
-जी अम्माजी (श्यामा पास आकर बोली)
– ऊपर वाले कमरे से धुली हुई दरियाँ ले आ और यहाँ बिछा दे। चौकी भी लेती आना।
– जी श्यामा जाते हुए बोली।
आज आकांक्षी का 10 वाँ जन्मदिन है। सच बहुत खुश है। इसलिए घर पर सन्मनारायण यूजन रखा गया है और शाम को बच्चों की बर्थडे पार्टी है।
विभा ने भोग के लिए प्रसाद व पंचामृत बना लिए है और सब्जी भी काट लिए है, तभी आकांक्षी की आवाज आई- मम्मा, पापा आप दोनों पूजा रूम में आइए। पूजा रूम में तीनों बच्चे और माँ मौजूद थे। विभा और वेग भी आ गए।
फिर आकांक्षी भगवान के पास गई फूल चढ़ाते हुए, बोली – गाँड जी, आज मेरा बर्थडे है मुझे ढेर सारी विशेश देना, थैंक्यू गाँड जी। भगवान को प्रणाम करके आकांक्षी ने दादी, पापा, मम्मी के पैर छुए। सबने उसे जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी
– और मेरा गिफ्ट कहाँ है? ( आकांक्षी ने कमर पर हाथ रखकर इतराते हुए पूछा।)
– मेरी प्यारी सी गुड़िया के लिए मैं प्यारी सी गुडिया लाई हूँ ये लो, दादी ने कहा।
– बाओ दादी, ये तो बहुत गुल्दार है, थैंक्यू दादी। उसने चहकते हुए कहा।
– मेरी तरफ से ये आपके लिए। विभा ने पैकेट देते हुए कहा।
– इसमें क्या है मम्मा?
– खोलकर देखो!
(पैकेट खोलकर) मम्मा ये तो बहुत प्यारी ड्रेस है थैंक्यू सो मच मम्मा।
– बेटा आपको पसंद आई ?
– हाँ मम्मा बहुत ।
पापा के हाथ में कुछ नहीं है, लगता है वो दीदी के लिए गिफ्ट जाना भूल गए है। अंश ने सबका ध्यान खींचते हुए कहा।
– अरे कैसे भूलूंगा भई….लाया हूँ ना, ये देखो (वेग ने जेब से माचिस की डिब्बी निकाल कर कहा)
अंशिका हँसते हुए – पापा आप दीदी के लिए माचिस लाई लाए हो… हा हा हा ….ये तो हम भी दे देते ही ही ही ही…।
– हाँ भई माचिस ही सही लगा (फिर मुस्कुराकर) ये लो बेटा आपका गिफ्ट।
आकांक्षी ने डिब्बा ले लिया और खोलकर देखा तो उसमें एक चावी थी (आश्चर्य से) ये किसकी चाबी है पापा ?
– बेटा थे आपकी नई साइकिल की चाबी है। जरा बाहर निकलकर देखो।
– सच्ची पापा ( आकांक्षी चहकते हुए बाहर चली गई।
सभी उसके साथ बाहर आ गए।
लाल और काले रंग की लेडिस रेंजर साइकिल थी वह, बहुत ही खुबसूरत।
– कैसी लगी बेटा साइकिल आपको। बेग ने पूछा।
– बहुत सुन्दर है पापा, लव यू पापा ( वह वेग से लिपटते हुए बोली।)
– लव यू टू मेरा बच्चा, हमेशा खुश रहो।
दोनों बाप बेटी के प्यार को देखकर विभा को अपने पापा की याद आ गई। वो भी अपने उपा की लाडली बिटिया है। माँ तो बचपन में कभी-कभी डांट भी देती थी, लेकिन पापा हमेशा उसकी तारीफ करते। विराट भैया तौर विभा की लड़ाई में मां भैया की साइड रहती बी तो पापा विभा की।
आज वे भी आने वाले है, सब पहुँचते ही होंगे। 8.30 बज रहे है।
विभा ने कहा- माँजी 8.30 बज रहे है, चलिए नाश्ता कर लीजिए, आपको दवाई भी खानी है। पंडितजी को समय लगेगा आने में। चलो बच्चों, भाप तीनों भी नाश्ता कर लो। चारों नाश्ता कर ही रहे थे तभी डोरबेल बजी। श्यामा ने दरवाजा खोला।
– कौन है, श्यामा ? अखबार पढ़ते वेग ने पूछा।
-भैया, भाभी के मम्मी, पापा और भाभी आए है। (श्यामा ने कहा।)
विभा ने सुना तो दौड़कर मम्मी पापा से लिपट गई। बच्चे भी नाना, नानी, मामी और टिनी, टुकटुक दीदी से मिलकर बहुत खुश हो गए।
– पापा अभी थोड़ी देर पहले मैं आपको ही याद कर रही थी। (विभा बोली)
पता है मुझे। कार में बैठे हुए हुए हिचकियाँ आ रही थी। तभी मैं समझ गया था विभु, कि जरूर तूही याद कर रही है।
-भाभी, भैया नहीं है आए ? विभा ने शिल्पी भाभी से पूछा।
– वो तो काम से बाहर गए हुए है दीदी। शिल्पी भाभी बोली ।
-अच्छा कोई बात नहीं | आप सब आए, मुझे बहुत अच्छा लगा।
मेल मिलाप में कब 9.30 बज गए पता ही ना चला। पंडितजी आ चुके है सारे मेहमान भी आ चुके है। विभा और वेग आकांक्षी के साथ पूजा में बैठे है। अंश, अंशिका बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त है। 12 बजे पूजा समाप्त हुई। फिर सबको खाना और प्रसाद देने का सिलसिला शुरू हुआ। आस पास के पड़ोसी प्रसाद लेकर चले गए। घर के लोगों को खाना खिलाते 2 बज गए। अंत में विभा और शिल्पी भाभी खाने बैठे।
सुबह से काम करते-करते थककर चूर हो गई थी विभा। कुछ देर आराम करने के बाद फिर शाम की तैयारियाँ करनी है। यह सोचकर वह कमरे में आराम करने चली गई।
शाम हुई। घर का हॉल गुब्बारे से सजा हुआ था। वेग और पापा ने मिलकर सजावट का काम किया था। माँ, माँजी और विभा रसोई संभाल रही है। शिल्पी भाभी आकांक्षी को तैयार कर रही है। बच्चों का आना शुरू हो चुका है। हॉल के बीच में मेज पर डॉल केक सज गया है।
शिल्पी, आकांक्षी, अंशिका, टिनी और टुकटुक के साथ जैसे ही हॉल में आई, सभी उनको देखकर वाह-वाह करने लगे। चारों बच्चियाँ बहुत ही सुंदर लग रही है। शिल्पी ब्यूटीशियन है उसने चारों बेटियों को परी लुक दिया है। सबने उनकी तारीफ की।
सारे बच्चे आ चुके हैं। डांस और मस्ती के बीच केक काटा गया। गिफ्ट के ढेर लग गए थे। बर्थडे गर्ल के साथ सेल्फी ली जा रही है तो कोई विडियो बना रहा है। कुछ खाना खाने में व्यस्त है। विभा सबको खाना खाने को कह रही है। 9:45 बज रहे थे, अधिकतर लोग खाना खाकर घर जा चुके थे। बस 6-7 मेहमान ही बाकी थे. वे सभी वेग के ऑफीस के दोस्त थे। वेग अपने दोस्तों से बात कर रहे है, विभा भी साथ है। तभी श्यामा ने आकर विभा के कान में कहा – ” भाभी, अम्मा आपको बुला रही है, जल्दी चलिए।
विभा, “जरा मैं आती हूँ” कहकर श्यामा के साथ रसोई में चली जाती है।
माँजी विभा को देखते ही कहती है। विभा सब्जी खतम हो गई है। क्या करें? बाहर वेग के दोस्त बैठें हुए है।
विभा – क्या? ऐसे कैसे खत्म हो गई ? अब क्या करें ?
वह बेचैनी से सारे खाने के आइटम देखने लगी।
दाल, चावल, पूरियाँ, रायता, पापड़, सलाद, गुलाब जामुन, काजूकतली सब है, बस पनीर की सब्जी नहीं है। सब्जी के बिना खाना कैसे खाएंगे सब?
उसने वेग को इशारे से बुलाया और सारा हाल बताया।
वेग- चिंता मत करो विभा, जरा फ्रिज खोलकर तो देखो।
विभा ने फ्रिज में देखा तो हैरान रह गई एक कंटेनर पूरी सब्जी से भरी रखी थी।
” यह किसने रखी, मैंने तो नही रखी ” वह बोली।
-मैने रखी, दरअसल कुछ देर पहले मैं किचन में पानी लेने आया था, तो देखा ज्यादा सब्जी नहीं बची है और मेरे दोस्त आने वाले थे इसलिए मैंने सब्जी फ्रिज में रख दी, ताकि बाद में प्रॉब्लम ना हो। वेग हंसते हुए बोला।
-ये तो तुमने बहुत अच्छा किया बेटा। मांजी बोली ।
सबने राहत की सांस ली।
वेग, पापा और मेहमानों ने खाना खाया फिर विभा, माँ, मांजी, भाभी और श्यामा ने खाना खाया। पांचो बच्चे गिफ्ट खोलने में मगन थे।
सब समेटकर विभा जब अपने कमरे में आई तो 12 बज रहे थे, वह सुबह की थकी बिस्तर पर निढाल हो गई। काम तो रोज ही रहता है पर बच्चों के बर्थडे पर काम चौगुना हो जाता है।
‘वैसे तो सारे व्रत त्यौहार वे विधि विधान और सादगी से मनाते है, बस बच्चों के जन्मदिन पर इतना ताम-झाम किया जाता है। साल में दो बार पार्टी तो हो ही जाती है एक आकांक्षी के जन्मदिन पर दूसरी अंश. अंशिका के जन्मदिन पर। वेग कहते है “मेरे बच्चे मेरी जिंदगी है, उनको मुस्कुराते देखता हूँ तो लगता है मैं किसी स्वर्ग में हूँ और वहाँ का राजा मैं ही हूँ।” बच्चों के लिए वेग हजारों रूपए बहा देते है वरना तो बेग थोड़े कंजूस भी है।
12.30 बजे वेग कमरे में आए तो देखा लाइट जल रही है। खिड़कियाँ खुली हुई है, महारानी साहिबा आराम से सो रही है। वेग खुद से ही कहने लगे-” इतनी भारी साड़ी पहन के ही सो गई, गहने भी नहीं उतारें। ये भी ना |
वेग ने कपड़े बदले, खिड़कियाँ बंद की और बत्ती बुझा के सो गए।
क्रमशः………
शिखा गोस्वामी “निहारिका”
मारो, मुंगेली, छ्त्तीसगढ़