
आसान क्या है ,
मुश्किल क्या है ?
प्रेम या नफ़रत?
सच या झूठ?
ईमानदारी या बेईमानी?
कई किरदार एक चेहरे पर आसान है,
या एक चेहरे पर कई किरदार ?
वैसे, आसान भी मुश्किल हो सकता है,
कहीं भी, कभी भी।
जैसे, मुश्किल भी आसान हो सकता है ,
कहीं भी, कभी भी ।
सच या झूठ की लड़ाई में,
कभी सच भी झूठ हो जाता है ।
और कभी झूठ भी,
एक सच ।
इतिहास गवाह है और
वर्तमान के सीने पर दागे जा रहे ,
लम्हों के ठप्पे,
भविष्य में गवाही देंगे कि,
आसान कुछ भी नहीं है ,
मुश्किल कुछ भी नहीं है ।
प्रेम या नफ़रत,
सच या झूठ
ईमानदारी या बेईमानी
सभी,
पैरों में पहने जा सकने वाले मोज़े हैं ,
इनका बायां या दायां नहीं होता है ।
सिर्फ़, एक आवरण होते हैं ,
जो जूते के साथ पैरों को बचाने में लगे होते हैं ।
@आलोक सिंह ‘गुमशुदा’