शीर्षक- ओ… आजादी का जश्न मनाने वालों
ओ..
आजादी का जश्न मनाने वालों..
क्या आजादी को तुमने है जाना..
कैसे मिली तुमको ये आजादी
क्या उस कीमत को है पहचाना..
लाखों बलि चढ़ीं
जब आंदोलन की वेदी पर
तब मिली है ये आजादी …
जो उस कुर्बानी को
ना तुमने समझा..
तो समझो तुमने की है
सिर्फ …
इक पूरे दिन की बर्बादी…
कुछ निश्चित तरानों को गाकर ,
चंद ध्येय वाक्यों को चिल्लाकर..
तुम आजादी के चरणों में
अपनी श्रद्धा का समन्दर भरते हो …
गा लिया गर तुमने
राष्ट्रगान एक दिन ठीक-ठाक..
तो खुद को
बड़ा धुरंधर समझते हो…
समझ पाए क्या बोलो तुम
उसके बोलों का अर्थ कभी?
ये कोई एक दिन में लिखा
गीत न था ,मेरे भाई…
यह एक रणभेरी थी,
कुछ उन्मुख और
कुछ दबी दबी ..
ये इक ऐसी ज्वाला थी
जो हर भारतवासी के दिल में
तब धधक रही ..
अपनी ये भारत माता
गुलामी की बेड़ी में जकड़ी
जब सिसक रही …
तब कुछ आजादी के परवाने
निज कर्तव्यों को उन्मुख हुए..
भुला दिए उन्होंने अपने सारे सुख..
और दूर मां भारती के
समस्त दुख किए…
भगत, सुभाष, शेखर, गांधी तो बस..
इतिहास में दर्ज कुछ नाम हैं..
न जाने कितने मां के लालों ने
बहाया अपना लहू..
जो आज भी गुमनाम हैं..
इस आजादी का कतरा- कतरा
उनके लहू से है सना हुआ…
उन सरफरोशों की तमन्ना से
है तिरंगे का ताना-बाना बुना हुआ…
कभी मिले फुर्सत तुमको तो…
कभी मिले फुर्सत तुमको तो
अपनी मिट्टी को तुम सूंघना …
इस रज के कण-कण में
आएंगे नजर पदचिन्ह उनके
लगा माथे से उस रज को
उन पद चिन्हों को तुम चूमना…
और सोचना …
सोचना कि..आन पड़ी तो …
क्या भर पाओगे
ऐसी कीमत तुम कभी?
एक बात जो सत्य है
ध्यान रखना तुम सभी…
इतिहास की कुछ गलतियों का
त्रास भोगा इतिहास ने..
ध्यान रखना इस जश्न की
नींव है उस त्रास में…
आज इस भूखंड पर ..
आज इस भूखंड पर
जो भी निज को देशभक्त कहे..
झांक कर अंतस में वो
खुद से बस एक प्रण कहे…
जो हुआ ..सो हुआ..
जो हुआ सो हुआ
उस पे मेरा बस नहीं..
पर आज रहते मेरे
नया कोई घुसपैठिया
पाएगा अब घुस नहीं …
त्रासदी उस वक्त की
अब फिर न दोहराई जाएगी..
आजादी के जश्न के लिए
कोई नई तिथि..
अब ना
इस देश को दी जाएगी…
मीनू यादव
शिकोहाबाद उत्तर प्रदेश