बादल के रंग
देखो बिखरे हैं
श्याम रंग सजल बादल
मिलन की आस लिए
धरती पर झुके बादल
चुनकर लाए हैं
विरह-प्रेम की सौगात
बूंदों फुहारों में
अनकही मन की बात
लम्बी यात्रा कर
घुमड़ते हैं आ गए
पिया मिलन की आस
यही सहज जतला गए
टूट कर जो बरसे
चाहत को हैं तरसे
मिट्टी की सोंधी खुशबू
है हवाओं में फिरसे
धरती की छाती पर
बूंदों ने तूलिका फेरी
मोर पपीहा नाच उठे
ताल तलैया हुई बावरी
नरम नम मृदा ने
अंकुरन की तान छेड़ी
सृष्टी सजी धानी-धानी
बादल की प्रीत घनेरी
है झंकृत फुहार
बरसे बादल का प्यार
धुली खिली धरती
पहुंची साजन के द्वार
बादल ने भर दिए हैं
इंद्रधनुष के सातों रंग
पुलकित मुखरित धरा
हुई है आप ही अंतरंग
✒️ कृष्णा मणिश्री