बांटना है तो सबको खुशी बांटिये,
सबने दामन में गम हैं सजाए हुए।
खुशियां भी है मिली सोचते हैं नही,,
देखते गम है खुशियां भुलाए हुए।
देने वाला भी देकर यही सोचता,
खुशियां देखे नही कैसे नादान है।
और से कितना ज्यादा मिला है इसे,
सोचता यह नही,बनता अंजान है।
गम दिखाता सभी को है रोते हुए,
अपनी खुशियां सभी को छुपाए हुए।
बांटना है तो सबको,,,,,,,
लोग अपने से,,,,, नीचे नही देखते,
देखकर आस्मां सब दुखी आज है।
दूसरों की है खुशियां रुलाती उन्हें,
अपनी खुशियां नही देखे मुहताज है।
दूसरों की खुशी में भी खुश होइए,
साथ सबका सभी से निभाए हुए।
बांटना है तो सबको,,,,,,,,,
राह में कोई,,,,,, रोते हुए जो मिले,
देके साहस उसे कुछ हंसा दीजिए।
खुशियां जो उनकी है याद उनको करा,
उनके दिल दर्द को फिर भगा दीजिए।
उनको भी खुश रखे और हंसाए सदा,
जो जमाने से निर्मल सताए हुए।
बांटना है तो सबको,,,,,,,,
सीताराम साहू”निर्मल”छतरपुर मप्र