कविता  चंद्रयान

कविता चंद्रयान

इसरो ले आया घट घट नया उजाला ।
मामा के घर पहुंचा है विक्रम लाला ।।

कवि दिनकर द्वारा तुमने जो भी बोला ।
माता ने भेजा दर्जी संग झंगोला ।।

पोशाक सही सिलकर वो पहनाएगा ।
तब ही धरती पर वापिस वो आएगा ।।

कुछ खास नमूने धरती पर लाएगा ।
ईंधन का नेक विकल्प हमें पाएगा ।।

कर दिया दूर दुनिया का सारा संशय ।
साकार किया भारत ने अपना निश्चय ।।

नासा वाले कुप्पे से फूल रहे थे ।
इसरो की ज्ञान शलाका भूल रहे थे ।।

चंदा के दक्षिण ध्रुव पर केतु तिरंगा ।
कर दिया चीन के अहंकार को नंगा ।।

ये भारत अब पहले सा नहीं सरल है ।
छूकर तो देखो बहती हुई अनल है ।।

संपूर्ण सौर मंडल में राज हमारा ।
दुनिया ने इसरो के यश को स्वीकारा ।।

कुछ ढोंगी मजहब की आयत पढ़ते हैं ।
जो रोज धर्म के नए नियम गढ़ते हैं ।।

जिनको मांटी की लाज नहीं है प्यारी ।
घर में ही कुछ बैठे हैं अत्याचारी ।।

कुछ नेता झूठे नंबरदार बने हैं ।
कुछ चीन देश के पैरोकार बने है ।।

जो आतंकी को मित्र कहा करते हैं ।
वाणी से जिनके गरल बहा करते हैं ।।

यदि कोई अपना चलता रथ रोकेगा ।
तो भारत उसको घर में घुस ठोकेगा ।।

हलधर”कविता चिंगारी है पहचानो ।
दुश्मन को तेग दुधारी है सच मानो ।।

हलधर

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