दर्द (लघुकथा)

दर्द (लघुकथा)

सुधा खुद को आईने में देख फूली न समा रही थी।कभी अपने गजरे को देखती कभी अपनी चूरियों को तो कभी अपने सुर्ख लाल जोड़े को।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की आज उसकी और अनुज की शादी है।तभी रमा ने उसकी खिंचाई की,,क्यों री सुधा आज तो तू बड़ी कातिल लग रही है,लगता है आज तू अनुज का कत्ल कर के ही छोड़ेगी। सुधा अंदर तक सिहर गई,उसने रमा के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा,,,,शुभ शुभ बोल रमा!मुद्दतों  इंतजार के बाद ये मिलन का पल नसीब हुआ है।अब हमे कभी अलग नहीं होना।
तभी कुछ टूटने  के आवाज के साथ सुधा चौंक गई हवा के तेज झौंको से एक तस्वीर को धराशाई कर दिया था।सुधा ने उस तस्वीर को सीने से लगा लिया।तस्वीर पर माला चढ़ाते हुए बोली   अनुज लगता ही नहीं की तुम मुझसे दूर गए हो।5सालों से मैं रोज यही सपना देखती हूं की मैं दुल्हन बनी हूं बरात आई है और हम एक दूसरे के हो गए है।

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