डार्विन – एस के नीरज

 डार्विन – एस के नीरज

डार्विन के सिद्धांत अनुसार मनुष्य के पूर्वज बंदर थे लेकिन आज भी बंदर  सर्वत्र विद्यमान हैं । और यदि हम बंदर थे तो हमारी पूंछ कहां गई । हो सकता है लंका दहन के समय लंका जलाते जलाते हनुमान जी की भी पूंछ भी जल गई हो तब से बिना पूंछ वाले बंदर सॉरी मानुष बच गए हैं । आज गांधी जी के भी तीनों बंदर कहीं दिखते नहीं लगता है वे भी इन्हें अपने साथ दक्षिण अफ्रीका ले गए!
        आज इंसान भले ही मदारी बनकर बंदरों को नचा लेे लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि हरकतों के मामले में इंसान बंदरों से कम नहीं है । छीनना ,झपटना ,मुंह बनाना , बच्चों के प्रति मोह माया , वस्तुओं के लिए लालच के मामले में इंसान और बंदर में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं है ।
          आज सब्जियों में सबसे ज्यादा महंगी चीज अदरक है क्योंकि उसे कूटा जाता है । फिर भी लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि “बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद…”

 एस के नीरज

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