तुमने दोस्ती की है,
न की हो,
तो कर लेना,
हर उनसे,
जो अब तक तुमसे,
तुम्हारे स्नेह से,
और तुम्हारा साथ पाने से,
वंचित है।
कैसा गुरूर,
कैसा रूतबा,
इन्हें जो अपने साथ,
तुम रखे हो,
ये छिपे शत्रु है,
नहीं बनाने देते,
रिस्ते,
नहीं जुड़ने देते,
कच्चे धागों को।
देखो न कितने,
तुम्हारी प्रतीक्षा में रत है,
के तुम आओ,
कह दो,
उनको अपना।
देखना,
दोस्ती किस कदर,
दूर कर देगी,
हर अकेलापन।
तुमने गर दोस्ती न की हो,
तो कर लेना,
झूम उठेगी,
जिन्दगी।
— संतोष श्रीवास्तव “सम”
कांकेर छत्तीसगढ़