मर्द का मर्द होना (भाग एक)

मर्द का मर्द होना (भाग एक)

झन्न,,,,,,,,।
थाली, कटोरे के जोर से बजने की आवाज आती है आंगन के बाहर बैठकखाने में।रामलाल उठकर चुपचाप अंदर चल देते है।
रीमा जोरजोर से चिल्ला कर मीना को कोसे जा रही थी,’जाने क्या सोचकर उठा लाए थे बाबूजी ई मनहूश को। एको ढंग नहीं है इसमें।एक भी घर का काम ढंग से नहीं कर सकती कामचोर।’
रामलाल_’अरे का हुआ रे रिमिया! काहे गला फार रही है बैठक में चार लोग बैठे है तानिको ख्याल नहीं है तोड़ा।’
रीमा की मां _’ठीके त कहती है रीमिया। ई मिनमा में कोनो गुण है।खाली चीज नासती है।अब रिमिया के लइकन को चऊमीन खाने का मन था तो बनाएगी का पूरा जराइए दी।ध्यान रहे कमवा पर तब न। अपना बाबू के ईहा से त फुटलो दमड़ी न लाई।आ ईहा खाली नुकसान करने पर तुली है।कामेश जी के बेटा को देखिए केतना दहेज मिला है। हुंह।’
सासु मां के मुंह बिचकाने पर रामलाल कहते है_’जाये दे रिमिया के माई।गलती हो गई होगी। ई त केकरो से भी हो सकता है।बाकी कुछु दिए हो महंत जी चाहे नहीं बहुरिया सबसे सुंदर और सुशील हमरी ही है।ये रिम्मी तू हू जाए दे रे।फेनू से बना ले और लइकन को खिला दे।बैठक में चार लोग है आवाज नहीं करो तु लोग।ये बहुरिया तनी चार कप चाय भेजो त बना के।’जोर की आवाज लगाते हुए रामलाल बैठक की ओर मुड़ जाते हैं।मीना तत्क्षण रसोई की ओर चल देती है।
’किसी को मेरी बात नहीं माननी,कम से कम बाबूजी तो एक बार पूछ लेते हुआ का।अब कैसे बताए की लइकन जल्दी बनाने के चक्कर में आंच बढ़ा दिए थे।इसमें हमरा का दोष।’मीना स्तब्ध खड़ी सोचती है तभी_ ’आह!’ मीना के हाथ पर चाय गिरने से उसकी तंद्रा भंग होती है।वो रोते_ रोते चाय सासु मां को दे देती है।

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