किसान के हृदय में
भारत बसता है
सपने बसते हैं
कि कोई भूखा न रहे
कोई भूख से न रोए
कोई भूखा न सोए!
किंतु
पूँजीपतियों के हृदय जोंक होते हैं
चूस जाते हैं उन सबका खून
जिनसे वे चिपकते हैं!
सरकार पूँजीपतियों की दासी है
इसलिए जनता उदासी है
जनता बेबस मजबूर
सरकार उन पर चलाती है लाठियाँ
मगरूर!
किसान बाड़ी बनाकर रोकता है जल
नेता उस बाड़ी पर लगाता है बल
बहा ले जाता है उसके हिस्से का पानी
यही है लोकतंत्र की सच्ची कहानी!
लोकतंत्र है जनता का?
जनता – जानती है सच संसद का
संसद में होने वाली बातें
किसानों की!
किसान देखता है बीज को
जो चीरता है सीना धरती का
किसान भी एक दिन
चीरेगा सीना
संसद की पथराई परती का
संसद का कोई सूना कोना
जब चीखता है किसानों के लिए
नेतागण हो जाते मौन
वे जानते हैं
अगर हक मिलेगा किसानों को
तो उन्हें पूछेगा कौन?
शशि कुमार पासवान