ग़ज़ल – बृजमोहन

ग़ज़ल – बृजमोहन

जितने  सच्चे हैं  हम लोग ।
उतने  झूठे  हैं हम  लोग ।।

मेरा    तेरा    करने  में ।
कितना पिछड़े हैं हम लोग ।।

मानवता   भूले   जबसे ।
तबसे बिखरे हैं हम लोग ।।

राम  राज   आए   कैसे ।
रावण जैसे हैं हम  लोग ।।

सच्चाई  को   लिखने  की ।
कुव्वत रखते हैं हम लोग ।।

यूँ  ही शायर मत  कहना  ।
जग से न्यारे हैं हम लोग ।।

दौलत की ख़ातिर साथी ।
घर से निकले हैं हम लोग ।।

बृजमोहन “साथी” डबरा ग्वालियर

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