जितने सच्चे हैं हम लोग ।
उतने झूठे हैं हम लोग ।।
मेरा तेरा करने में ।
कितना पिछड़े हैं हम लोग ।।
मानवता भूले जबसे ।
तबसे बिखरे हैं हम लोग ।।
राम राज आए कैसे ।
रावण जैसे हैं हम लोग ।।
सच्चाई को लिखने की ।
कुव्वत रखते हैं हम लोग ।।
यूँ ही शायर मत कहना ।
जग से न्यारे हैं हम लोग ।।
दौलत की ख़ातिर साथी ।
घर से निकले हैं हम लोग ।।
बृजमोहन “साथी” डबरा ग्वालियर