गुलनार (लघुकथा)

गुलनार (लघुकथा)

राजा ने जैसे ही न्यूज की हेडलाइन पढ़ी _”शिवपुर बना सबसे खूबसूरत गांव,उसे मिला सबसे रंगीन गांव का खिताब”राजा का 10साल पहले किया गया अनूठा प्रयास आज रंग ला रहा है।अभी तक उन्होंने 10000से अधिक गुलनार को पूरे पंचायत में लगाने का कीर्तिमान रचा है।ये पूरा पंचायत फूलों से ऐसे लदा पड़ा है, की अगर इसे हम ’गुलनार नगर’से बुलाएं तो उचित ही होगा।’गांव बदलेगा तभी देश बदलेगा’की ओर अग्रसर एक और सार्थक प्रयास।
राजा अतीत की विस्मृतियों में उतरने लगा।
आज पिता जी की बारहवीं है।घर में कोहराम मचा है।मां की चूड़ियां तोड़ी जा रहीं हैं।साथ में टूट रहे हैं राजा के अनगिन नन्हें सपने।मां के मांग का सिंदूर धोया जा रहा है,और साथ में धूल रही है,मां की जवानी।असमय पिता की हत्या ने जड़ से उखाड़ दिया था,राजा की,खुशियां, हिम्मत और बालपन को।वो मां को जब सफेद लिबास में लिपटे देखता है, तो उसे मूर्छा आ जाती है।वो चिल्ला उठता है”नहीं, नहीं मेरी मां ये नहीं पहनेगी।मैं मां को इस रूप में नहीं देख सकता।”सभी उसे समझाते हैं।दादा जी कहते हैं’ये हिंदू रश्म_रिवाज़ है। इसे मानना तो पड़ेगा। नहीं तो पाप लगेगा।”
राजा’लेकिन दादा जी रश्मरिवाज तो लोगों के भले के लिए होता है न?उनकी खुशियों का कारण बनता हैं न?जिन रश्मों _रिवाजों से मनुष्य आहत हो वो अंधविश्वास है।पैरों की जंजीर है। और इस जंजीर को तोड़ने में ही सबकी भलाई है।’
लोगों के तमाम समझाने के बावजूद राजा अपना हठ नहीं छोड़ता।
और मां के समीप जाकर मां से कहता है_”मां मैं ज्यादा कुछ तो नहीं जानता पर मैं इतना जरूर जानता हूं, की पिताजी जहां भी होंगे,आपको इस अवस्था में देख दुखी ही होंगे। आप के जीवन से एक रंग गया तो क्या हुआ?मैं हूं न। आपके जीवन में ही नहीं, इस पूरे गांव को ही रंगीन कर दूंगा।बस आप आज के बाद ये सफेद लिबास मत पहनना।

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