गुटखे की पुड़िया! – हरजीत सिंह मेहरा

गुटखे की पुड़िया! – हरजीत सिंह मेहरा

मां शारदे नमो नमः।।
पावन मंच को सादर नमन।।
दिनांक- 1/8/2023.
विधा- लघु कथा!
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                  सतीश..पार्क में अकेला बैठा, अपने अस्थिर मन को शांत करने की कोशिश कर रहा था!आज उस का तलाक होते होते बचा था।महज पांच साल की वैवाहिक जीवन में,यह दिल दहला देने वाला वाक्या था।वैसे उसके तलाक का कोई अहम कारण नहीं था।अच्छा खासा खाता पीता परिवार था उसका।पत्नी शालिनी भी पढ़ी लिखी और संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखती थी।सब में संस्कार कूट-कूट कर भरे हुए थे।परंतु एक छोटी सी बुरी आदत के कारण,उसे अदालत का द्वार देखना पड़ा था।
     सतीश आज उस दिन को कोस रहा था,जिस दिन पहली बार,दोस्तों के कहने पर उसने गुटखा का सेवन किया था।कॉलेज की अल्हड़ जवानी में,कब यह खेल चस्के में बदल गया,पता ही ना चला।धीरे-धीरे वो इसका आदी होता चला गया और फिर उसे इसकी लत लग गई।आलम यह हुआ कि,प्रत्येक दिन दस पंद्रह गुटखे की पुड़ियां खाए बगैर उसे चैन ही ना था।गुटखे का नशा धीरे-धीरे उसकी सेहत पर असर करने लगा।हर वक्त मुंह में गुटखा होने की वजह से,उसके तन से दुर्गंध आने लगी,जिसके कारण उसका कई जगह से रिश्ता टूट गया।इसी बीच लगातार गुटखा खाने की वजह से उसकी छाती में दर्द होने लगा,तो उसे अस्पताल में भी दाखिल होना पड़ा था।बड़ी मुश्किल से उसकी जान बच पाई थी।
      घर वालों ने दौड़-धूप कर सतीश का रिश्ता,शालिनी से कर दिया।परंतु,उसके व्यसन की बात छुपाए रखी।पहले कुछ दिनों तक तो सब ठीक था,लेकिन सतीश को गुटखे की लत फिर सताने लगी।शालिनी से छुपकर वो फिर से गुटखा खाने लगा।परंतु सतीश कब तक छुपाए रखाता।एक दिन शालिनी को पता लग गया।पहले तो शालिनी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की,वो ना माना तो, कहासुनी…गृह कलेश होने लगा।कई बार तो वो रूठ कर अपने मायके भी चली गई।सतीश उसे मिन्नतें करके घर वापस ले आता था।कुछ दिन तो सतीश नशा नहीं करता,लेकिन फिर शुरू हो जाता था।जब लाख जतन करने के बाद भी सतीश में कोई सुधार ना आया,तो शालिनी ने अदालत में तलाक की अर्जी पेश कर दी।
       इस बात की जानकारी सतीश को मिलते ही उसके होश उड़ गए।उसने फिर शालिनी से सुलह करने की कोशिश की,परंतु शालिनी मानने को तैयार ना हुई।मामला “वूमेंस डिस्प्यूट सेल” में पहुंच गया।पेशी हुई तो,आरोप- प्रत्यारोप की जंग में जीत शालिनी की हुई।अदालती फैसले को सुन, सतीश सन्न रह गया।अपनी गृहस्थी टुटते देख उसकी आंखों में आंसू आ गए।उसने न्यायाधीश से गुहार लगाई के,उसे शालिनी से अंतिम बार मिलने और बात करने का एक मौका दिया जाए। न्यायाधीश ने शालिनी से इस बारे उसकी सहमति चाही।पढ़ी-लिखी और संस्कारी होने के कारण,शालिनी से अपने पति की यह दशा देखी नहीं गई, उसने सहमति दे दी।
       एकांत में बैठ,दोनों पति-पत्नी ने आपस में काफी वक्त तक बात की।इस बार सतीश ने अदालत में लिखित रूप से दस्तावेज तैयार करने की सहमति दी,के अगर अब भी वो ना सुधरा तो,अदालत जो फैसला करेगी उसे मंजूर होगा।शालिनी ने भी इन शर्तों के अधीन सतीश के साथ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए और अपना तलाक का केस वापस ले लिया।
    आज पार्क में बैठ वो यही सोच रहा था कि,एक छोटी से गुटखा की पुड़िया ने,उसके जीवन में किस प्रकार खलबली मचा दी थी।उसे सबक मिल गया था की महंगा हो या सस्ता,हर रूप में नशा विनाशकारी और जानलेवा ही होता है।सतीश ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि,आज के बाद वह कभी गुटखा का सेवन नहीं करेगा..।

                       (समाप्त)

सच है कि…
जीवन जन्म मरण के मध्य का समय है । केवल ज्ञानी या अन्य ज्ञान के धारक ही यह बता सकते है कि मध्य का समय कितना है जो वर्तमान में हमारे यहाँ सम्भव नहीं है । परन्तु हम अनिश्चित जीवन के समय में एक कार्य तो करे कि ज्यादा से ज्यादा जैसे जहाँ जब भी सम्भव हो धर्म करने में रत रहे । संसार में रहते हुए आसक्ति से दूर करने का प्रयास करे । अगर हमारे आसक्ति है तो कर्मों की श्रंखला भी गहरी है जो संसार भ्रमण को बढ़ाने वाली है अगर निवृत्ति है तो समझो आत्मा के कर्म हल्के होते जा रहे है ।
जो सत्य अटल है वो ही ध्रुव सत्य है। आत्मा अमर है शरीर नश्वर।जैसे हम रोज़ कपड़े बदलते हैं वैसे ही आत्मा अपना समय पूरा होते ही उस शरीर से निकल कर दूसरा चोला धारण कर लेती है। मनुष्य जन्म मिला।सभी जानते हैं कि हम खाली हाथ आए हैं यह तो सब याद रखते है पर खाली हाथ ही जाना होगा अंत समय जब इस दुनियाँ से विदा होंगे तब एक फ़ुटी कोड़ी भी साथ नहीं ले जा सकते। इस बात को क्यों भूल जाते जाते हैं ।
इसीलिए तो जीवन का सही मूल्यांकन नहीं करते ।इसी विस्मृति में मोह माया के जाल में उलझ जाते है व ग़लत करने में भी हम नहीं डरते हैं । यह ध्रुव हम सब सत्य जानते हैं पर अमल नहीं करते। जो इस मर्म को समझ लिया उसे जीवन जीना आ गया।
मेरे चिन्तन से रोज रात को सोने से पहले समीक्षा हो कि जो सही हुआ उसकी प्रशंसा करे,उपलब्धि माने जो ग़लत हुआ उसका पश्चात्ताप हो तथा उसे सुधारे आनेवाले कल में ना दोहराए वो ग़लतियाँ कुछ ऐसे तथ्य जोड़े जो खोदे गए ग़ड्डे को पाटकर समतल कर सके सोचे , हर दिन नया जन्म , हर रात नई मौत ।जीवन-मृत्यु का चक्र चलता रहता है बार-बार। हम जन्म लेते है तो देह त्यागकर मृत्यु को अपनाते है। यही जीवन का शाश्वत सत्य है जिसे कभी भी नकारा नही जा सकता हैं ।मृत्यु में भी नए जीवन का सार छिपा है यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा है तथा यूँ ही चलता रहेगा। जब तक जीवन सम्भव है इस धरा पर।इसलिए डरें नहीं सच को स्वीकार करे ।
 प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
स्वरचित@-
हरजीत सिंह मेहरा, लुधियाना, पंजाब, भारत।

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