जो खता मैंने नहीं की उस पर पछताना पड़ा,
बेवफाई तूने की और मुझको शर्माना पड़ा।
सुर्ख स्याह रंग जैसी अब हो गई सूरत मेरी,
इश्क़ के धोखे में यूं मुझको मुरझाना पड़ा।
खिल उठा तेरा चमन,रौशन हुआ जहान है,
अपनी हस्ती बेचकर,यूं हमने जुर्माना भरा।
प्यार के इश्तिहार सारे राख अब हमने किए,
एक_एक लौ से खुद हमको जल जाना पड़ा।
इश्क़ के सौदे में कुछ यूं मिली बरकत मुझे,
सांसे चल रही लेकिन मुझको मर जाना पड़ा।
रजनी प्रभा