इकरार ख़ुशी देता है

इकरार ख़ुशी देता है

इकरार ख़ुशी देता है , लेकिन ऐसी बात नहीं , इनतीजार में भी है अपना एक अलग मज़ा ।
लेकिन अगर इकरार बुलंदियों तक ना पहुँचे तो इनतीजार बन जाता है एक सज़ा ।

तक़रीबन तमाम उम्र बीत चुकी है लेकिन उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा ।
ना जाने किस काली सियाही से ऊपर वाले ने लिखी थी हमारी तक़दीर की रेखा ।

क्या अब रब के दरबार में भी होने लगीं हैं साज़िशें ?
फिर क्यूँ हैं मेरी ज़िंदगी में रंजिशें ही रंजिशें ?
अब तो मान जा मेरे मौला थक चुका हूँ , कर
चुका हूँ हज़ारों कोशिशें !

कहते हैं सब्र का फल मीठा होता है , लेकिन अब तो इनतीजार की भी हो गयी है इंतहा ।
पूरी उम्र इनतीजार किया हमने , सब्र किया हमने , इस सब्र और इनतीजार ने कर दी है हमारी ज़िंदगी तबाह

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