इंसानियत जिंदा है,पर.

इंसानियत जिंदा है,पर.

पृष्ठ-२.
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   ऑटो चालू कर हरप्रीत सिंह ने अपनी पत्नी सिमरन को भी साथ चलने को कहा। उसे लेकर धर्मपाल के दरवाजे के सामने आ गया।धर्मपाल अमृतपाल के पिता का नाम था।धर्मपाल अपाहिज था।चलने फिरने को लाचार..
    घर में अमृतपाल के अलावा और कोई शख्स ना था,जो इस विकट घड़ी में साथ रहता।भाई यशपाल दूसरे शहर में नौकरी करता था,जो अभी तत्काल नहीं पहुंच सकता था।
  अंदर से जोर जोर से रोने और कराहने की आवाजें आ रही थीं।सिमरन फ़ौरन अंदर की और लपकी।
 अमृतपाल ने अंदर आकर कहा- 
 "भाभी ऑटो आ गया है..मैं चाची के साथ अंदर आकर आपको सहारा देता हूं।"
  सिमरन ने महिमा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा- "हौंसला रख पुत्तर,सब ठीक हो जाएगा। हिम्मत कर..चल उठ,ऑटो पर बैठ।"
    अमृतपाल और सिमरन ने महिमा को सहारा देकर,बड़ी मुश्किल से उठाया।महिमा लड़खड़ाते हुए चल रही थी। दरवाजे पर आते ही हरप्रीत ने भी उसे बढ़कर सहारा दिया और कहा- "परमपिता परमेश्वर का नाम जप बेटा..वो सारे दुख दूर करेंगे! सब्र रख.."
   सब ने सहारा देकर महिमा को ऑटो पर बैठा दिया।
 वक्त की नजाकत और मौसम के रवैये को देखते हुए,हरप्रीत ने ऑटो को धीरे धीरे सरकाना चालू किया।जोरों की बारिश में, कुछ भी दिखना संभव ना हो रहा था।जलभराव से सड़क के खड्डों का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था।एक आध खड्डे में जब पहिया गिरता,तो महिमा की चीख निकल जाती।पर,वाहेगुरु का जाप करते हरप्रीत आगे बढ़ते गए।
  कसबे से बाहर निकलते ही एक सुनसान सड़क से गुजरना पड़ता है।हरप्रीत ध्यान से ऑटो चलाते हुए चल रहे थे,कि अचानक एक जगह खड्डे से टकराते ही ऑटो एक और झुकने लगा।हरप्रीत ने ब्रेक लगा कर जब नीचे उतर कर देखा,तो पिछला पहिया पंचर हो गया था।
  "हे परमात्मा,यह भी अब ही होना था!तू घबरा ना पुत्तर..अभी पहिया बदल देता हूं!"
 बारिश में भींग कर जिस्म तरबतर हो गया था,लेकिन इसकी परवाह किए बगैर पीछे आकर, जब उस ने स्टेपनी को खोलने के लिए हाथ बढ़ाया,तो उसे याद आया स्टेपनी तो मरम्मत वाली दुकान पर ही भूला आया था। क्योंकि वह भी दोपहर को पंचर हो गई थी।
 "क्या हुआ चाचा.."अमृतपाल पास आकर बोला।
  "स्टेपनी पंचर वाली दुकान पर ही रह गई..हे वाहेगुरु यह कैसा इंतिहान है!"हरप्रीत ने कहा।"हे मालिक मेहर करो..तू ही राखन हार है।कोई राह दिखा मेरे रब्बा।"मन ही मन अरदास की!

   रात के बारह बज रहे थे! बारिश के कारण दूर-दूर तक बिरानगी छाई हुई थी।ना कोई वाहन,ना ही कोई मदद की आस नजर आ रही थी।इधर महिमा की हालत बिगड़ती ही जा रही थी। प्रसव पीड़ा बढ़ती जा रही थी! कराहट अब चीखों में तब्दील हो गई थी।
अमृतपाल और हरप्रीत,पागलों की तरह इधर से उधर भाग रहे थे।अचानक दूर से प्रकाश पुंज नजर आया..शायद वह मोटर कार थी।
  हरप्रीत दौड़कर बीच सड़क पर खड़े हो गए और उसे रुकने का इशारा करने लगे।
  कार की ब्रेकें चरमरा उठी। मोटर कार पास में रुकते ही,अंदर से एक रसूखदार व्यक्ति ने लगभग चीखते हुए बदतमीजी से कहा-
  "अबे ओ बुड्ढे,अंधा हो गया क्या!मरने का इरादा है.. हट सामने से.."
  लेकिन उसकी बात का बुरा ना मानते हुए हरप्रीत ने हाथ जोड़कर उससे कहा-
   "ओटो पंचर हो गया है।उसमें मेरी बहू प्रसव पीड़ा से असहनीय कष्ट भोग रही है.. कृपया उसे हस्पताल तक छोड़ दीजिए।"
   "तो मैं क्या करूं?मैंने ठेका ले रखा है,किसी को पहुंचाने का! परे हो जा,मुझे जाने दे.."- उसने बदतमीजी से जवाब दिया।
  और गाड़ी लेकर आगे बढ़ गया।
  इसी तरह काफी देर तक,दो चार वाहन और गुजरे,पर किसी की मानवता नहीं जागी।सब दो टूक सा जवाब दे कर,आगे बढ़ गए।
  हरप्रीत की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसने तय किया, महिमा को वो और अमृतपाल उठाकर आगे चलते हैं। लेकिन इस हालत और हालात में यह भी संभव नजर नहीं आ रहा था। और यहां से अस्पताल भी काफी फासले पर था।

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