कलयुग

कलयुग

सतयुग,द्वापर,त्रेता,कलयुग,
सबका केवल एक विधान।
चक्र चले चाहे जैसा भी,
स्त्री का केवल अपमान।

राजा,महर्षि,गुरु,सखा,
चाहे सत्ता पर हो प्रधान।
चीर हरण तो तय ही होता,
सत्य पे हावी अब भी सैतान।

क्यों आग लगी,क्यों जली आबरू
क्यों न्याय फिर से हारा है,
जिसने फिर जननी को निर्वस्त्र किया,
वो पुरुष नहीं निर्मम हत्यारा है।

नारी अब तुम प्रतिकार करो
दुष्टों का संहार करो,,
चीर हरण अब नहीं सहो,,
अन्याई पर वार करेगी।

कोमल बनकर है बहुत जिया,,
आंसू को भी बहुत पिया,,,
अब क्षमा याचना नही सुनो,,
खुल कर के चित्कार करो।
नारी अब तुम प्रतिकार करो,,

सत्ता की जड़े हिला कर,,
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाकर,,
मधुबन में नव पुष्प खिलाकर,,
अब सुंदर ये संसार करो,,
नारी अब तुम प्रतिकार करो,,

बहुत जिया मां,बेटी,बहु, बन,
सजाया घर को बस बन ठन,,
अब स्वयं का जीवन स्वीकार करो,
अब नव भारत का उद्धार करो,,
नारी अब तुम प्रतिकार करो,

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *