कविता” प्रेम

कविता” प्रेम

कविता” प्रेम

कुछ उम्मीद नहीं कुछ चाहिए भी नहीं ।
कैसा है यह प्रेम फिर कम नहीं होता ।।

गलत सही का आईना भी दिखाई ना दे ।
झूठ सच से आहत होती भावनाएं ।।

दिल और दिमाग के बीच गहरी लड़ाई ।
विचित्र सी अपेक्षाएं जो मेरी है नहीं ।।

तृष्णा कुछ नहीं फिर अजीब सी इच्छा ।
खुद को समझाने की हर तरकीब बेकार ।।

यादों से दूर खुद को उलझाये रखना ।
एक जिद एक अजीब सा गहरा नशा ।।

अरसे से दबे हुए खामोश एहसास ।
धुंधली सी तस्वीर जो मिटती नहीं ।।

आंखों से अश्कों की बारिश रुकती नहीं ।
फासलों के बाद भी यादें उजडती नहीं ।।

ऐसा दर्द हम तो बिखरने लगे ।
सभी संभावनाएं हर पल से सिमटने लगे ।।

पूर्ण रूप से डूबती मेरी संवेदनाएं ।
सवालों के चक्रव्यू में घिरी वेदनाएं ।।

आंसुओं से बिखरती प्रेम की तलाश ।
सांसों में तूफानी सा कौतुहल ।।

अजीब सी मजबूरी दर्दे-दिल की ।
कैसा है यह प्रेम फिर कम नहीं होता ।।

“कविता नामदेव”,….नजीबाबाद(बिजनौर).

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