
कि उसकी बेरुखी हुई, मुझमें,मैं ही ना रहा
दुश्मन ये आशिकी हुई,मुझमें,मैं ही ना रहा
मुझको देख हंस रहा है आईना भी आज
मेरी यूं हंसी हुई, मुझमें,मैं ही ना रहा
मुझसे यूं है मिल रहे,जैसे मैं हूं कोई ओर
अजब सी दोस्ती हुई,मुझमें मैं ही ना रहा
मुझी से मांगता जवाब,मेरे किए सवाल का
बहस ये मतलबी हुई,मुझमें मैं ही ना रहा
कि मेरा चाहना उसे,ना जाने बोझ सा लगे
बड़ी और ये तिश्नगी हुई,मुझमें,मैं ही ना रहा
डॉ विनोद कुमार शकुचन्द्र