किशोरों में बढ़ते अपराध और भटकता बचपन

किशोरों में बढ़ते अपराध और भटकता बचपन

किशोरों में अपराध के बढ़ते मामलों पर यदि विचार करें तो हम पाएंगे कि प्रतिवर्ष कम से कम 500से अधिक बच्चे किसी अपराध में संलिप्त पाए गए हैं! किशोरावस्था में व्यक्तित्व के निर्माण तथा व्यवहार के निर्धारण में वातावरण का बहुत हाथ होता है।हमारा कानून भी इस बात को पूर्णता से स्वीकारता है कि कोई भी किशोर जन्मजात अपराधी नहीं होता है। उसके द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिए हमारा परिवेश और हमारी परिस्थितियां उत्तरदाई होती है, इसलिए भारत समेत अनेक देशों में किशोर अपराधियों के लिए अलग-अलग कानून न्यायालय और न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। उनके न्यायाधीश और संबंधित वकील बाल मनोविज्ञान के अच्छे जानकार होते हैं। मुख्यतः कानूनी दृष्टिकोण से बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालकों द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य है ,जिससे कानून कार्यवाही के लिए बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है।भारत में बाल न्यायालय के समग्र 1986 संशोधित 2000 के अनुसार 16 वर्ष की आयु के लड़के और 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियां के अपराध करने पर बाल अपराध की श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है। अलग-अलग राज्यों में बाल अपराध की सीमा अलग-अलग है। केवल आयु ही बाल अपराध को निर्धारित नहीं करती, बल्कि इसमें अपराध की गंभीरता भी महत्वपूर्ण पक्ष है। मनोवैज्ञानिकों एवं समाजशास्त्रीय अध्ययन द्वारा से यह ज्ञात हुआ है कि मनुष्य में अपराधिक प्रवृत्तियों का जन्म बचपन में ही हो जाता है। अंकेक्षणों (स्टैटिस्टिक्स) द्वारा यह तथ्य प्रकट हुआ है कि सबसे अधिक और गंभीर अपराध करने वाले किशोरावस्था के ही बालक होते हैं। इस दृष्टि से किशोर अपराध को महत्वपूर्ण कानूनी, सामाजिक, नैतिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्या के रूप में देखा जाने लगा है।
बाल अपराध के लिए उत्तरदाई परिस्थितियां:-
अभिभावको और शिक्षको की उपेक्षा: बच्चे के चरित्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका उसके अभिभावकों और शिक्षको द्वारा निभाई जाती है।लेकिन अगर उनके माता_पिता ही बच्चों की गलत आदतों पर ध्यान नहीं देंगे तो उन बुरी आदतों को बढ़ावा मिलेगा जो आगे चलकर नुकसान देह साबित हो सकती है।
पारिवारिक परिस्थितियां:अक्सर बच्चा वही सीखता है जो अपने परिवार में वह देखता है इसीलिए अगर उसका परिवार गलत वारदातों में संलिप्त है तो उसका भी ऐसा करना स्वाभाविक हो जाता है।
बच्चे की संगति :कहा जाता है कि संगत जैसा होगा उसका स्वभाव और आचरण स्वत: वैसा ही होता चला जाएगा। अगर बच्चा गलत संगति में रहता है तो उसका आचरण भी स्वत: ही बिगड़ता चला जाएगा ।
अश्लील फिल्में और गलत पुस्तकें: पढ़ना माता-पिता को यह भी ध्यान देना चाहिए कि उनका बच्चा कैसी फिल्में या धारावाहिक देख रहा है क्योंकि अधिकांश बच्चे फिल्मों को देख कर उसे आत्मसात कर लेते हैं। उन पर फिल्मों के नायक/ नायिका जैसा बनने की उमंग सी छा जाती है। अश्लील किताबें भी उनके भद्दे चरित्र का निर्माण कर सकती है, इसलिए उनके जीवन में अच्छे साहित्य और स्वास्थ्य एवं मनोरंजन का समावेश करना अभिभावकों की जिम्मेदारी होती है।
माता-पिता का नौकरी में होना: आधुनिकीकरण  या फिर बढ़ती जरूरतों के कारण माता-पिता दोनों का नौकरी में होना और बच्चों को समय कम देना या केयरटेकर के भरोसे रखना भी बच्चों के कोमल मानस पटल को उपेक्षित महसूस कराता है।जिस कारण वह गलत चीजों में स्वयं को व्यस्त करते हैं ।चाहे वह उच्च वर्ग के हो या निम्न वर्ग के दोनों के कार्य में व्यस्त रहने के कारण बच्चों को सही गलत की सीख देने वाला कोई नहीं रहता जिस वजह से भी बच्चे बुरी आदतों में पड़ जाते हैं और आश्चर्य की बात यह है कि पांचवी,छठी क्लास के बच्चे एवं बच्चियां जिन्हें अभी कोई सामाजिक ज्ञान नहीं वर्जनाओं और मर्यादाओं की सभी सीमा को पीछे छोड़ चुके हैं।

  आधुनिकता का प्रभाव:स्वयं को आधुनिक या मॉडर्न बताने के कारण बच्चों का भड़काऊ कपड़े पहनना,ड्रिंक करना, होटल नाइट पार्टी करना, सिगरेट पीना,दोस्तों के साथ अकेले पिकनिक या भ्रमण पर जाना, स्वस्थ  स्वदेशी  चीजों को छोड़ मादक और तामसी भोजन करना। यह सारी चीजें भी उन परिस्थितियों का निर्माण करती है जिससे बच्चा बुरी आदतों में पड़कर अपराध कर बैठता है।व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमा ना होना।

 कोलाहल पूर्ण पारिवारिक माहौल: कम जगह में अधिक लोगों के निवास से भी बच्चे को सुनने,समझने और उसे उचित मार्गदर्शन देने में अभिभावक चूक जाते हैं फिर बच्चे को बाहर जो उचित लगता है वह उसे आत्मसात करने लगता है जिसमें अपराधिक प्रवृत्ति प्रमुख होती है।

सस्ती और सहज सुलभ डिजिटल प्लेटफॉर्म:-
डिजिटल वर्ल्ड बनने से तो वैश्विक गांव का सपना साकार हुआ ही है साथ ही सस्ती डिजिटल सेवाओं की वजह से बच्चे की मानसिकता भी दूषित हुई है। वे वह भी देख रहे हैं जो जरूरी नहीं है और इस वजह से गलत जानकारियां भी उनके मस्तिष्क में घर कर रही है। जिस कारण उनका बचपन सही गलत में फर्क नहीं कर पाता है और वह भटक जाते हैं।

बाल अपराध की श्रेणी में रखे गए कार्य :-
1-माता-पिता की अनुमति बिना पर से भाग जाना ।
2- लड़ाई झगड़े करना।
3- चोरी करना ।
4-मादक वस्तुओं का प्रयोग करना
5- यौन अपराध करना
6-अपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता
7-अभद्र भाषा का प्रयोग करना 8पारिवारिक सदस्यों की बातों को अनदेखा अनसुना करना
9-अश्लील फिल्मों और साहित्य पढ़ना
10- कानूनी विरोधी कोई भी कार्य करना।
हालांकि विशेष किशोर पुलिस इकाई एसजेपीयू बाल अपराध को रोकने में कारगर साबित हो रही है। इससे पहले यदि कोई बाल अपराधी पकड़ा जाता था तो उसे थाने में रखा जाता था जहां के  आपराधिक प्रवृत्तियों का उनके मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। यहां उन्हें काउंसलिंग के माध्यम से समझाया जाता है। बाल अपराधियों को रखने की यहां विशेष सुविधा है। मानसिक रूप से दोषपूर्ण मानसिक रोग से ग्रसित परिस्थिति जन्य एवं सांस्कृतिक वातावरण के अतिरिक्त बालकों द्वारा किए गए अधिकांश अपराधों में से लगभग 2.3% ही पुलिस और न्यायालय के ध्यान में आती है।
बाल अपराधों का यदि हम अंकन करें तो स्थानीय एवं स्पेशल  विधियों के तहत 1998 में सबसे अधिक  आबकारी एक्ट( 23.9) और गैंबलिंग एक्ट (4.6)के अंतर्गत आते हैं। सन 1998 में 5 राज्यों महाराष्ट्र (21.6) मध्यप्रदेश (27.2) राजस्थान (8.5)बिहार (6.8 )आंध्र प्रदेश( 8.0) में पूरे देश में आईपीसी के तहत स्कूलों में से 77% हुए बाल अपराधों में गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक है। पारिवारिक स्थितियों कमजोर होने से बच्चों के अपराध का ग्राफ ऊंचा हो जाता है और यह दर 12 से 16 वर्ष के बच्चों में अधिक है क्योंकि इस उम्र में  यह परिवार और समाज को थोड़ा-थोड़ा  समझने लगते हैं।

बाल अपराध के अनेक कारण हो सकते हैं यथा,,,
1- पारिवारिक कारण :
I.   वंशानुक्रम
 2. अपराधिक भाई-बहन
 3. परिवार की आर्थिक दशा
 4. भीड़भाड़ युक्त परिवार।
 2- व्यक्तिगत कारण :
1. शारीरिक कारण
2. मानसिक योग्यता
3. भावनात्मक स्थिरता और मानसिक संघर्ष
3-सामुदायिक कारण:
1. पड़ोस
2.स्कूल
3.चलचित्र और अश्लील साहित्य
 4. अपराधी क्षेत्र।
उपचार:
1. यथा चिकित्सा
2. व्यवहार चिकित्सा
3. क्रिया चिकित्सा
4. परिवेश चिकित्सा ।
बाल अपराध को रोकने का उपाय: किशोर वर्ग के कंधों पर ही देश के निर्माण का कार्य भार होता है।ऐसे में यदि यही कर्णधार दिग्भ्रमित हो जाते हैं तो राष्ट्र का भविष्य संकटग्रस्त हो जाएगा। ऐसे में इन आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त बालमन को भिन्न-भिन्न माध्यमों से उपचार कर शुद्ध किया जाता है और उनके भविष्य को उज्जवल बनाने की भरपूर कोशिश की जाती है। कई तरह के उपाय इसमें शामिल हैं यथा कानूनी उपाय बाल न्यायालय:1960 के बाल सुधार अधिनियम के तहत बाल न्यायालय स्थापित है।
1- सुरक्षात्मक संस्थाएं ,,
2- रिमांड क्षेत्र किया अवलोकन
3- प्रमाणित या सुधारात्मक विद्यालय।
4- परिवीक्षा हॉस्टल आदि।
आधुनिकता के दौर में अत्यधिक व्यस्तता को कम कर के बच्चों को उचित समय, सुझाव, सम्मान और सहयोग देकर हम इस बढ़ते अपराधिक गतिविधियों की जड़ों को कमजोर कर सकते हैं। बच्चों को हमारी सभ्यता और संस्कृति का उचित संस्कार देकर उसमें गहरी आत्मीयता को भर कर इस भटकते बचपन को ठहराव दिया जा सकता है।हमारे नैतिक मूल्यों की उन्हें पहचान करानी होगी। राष्ट्रप्रेम,सौहार्द तथा भाईचारा और माननीय गुणों का समावेश उन्हें स्थिर करने और उनका उचित मार्गदर्शन करने में सार्थक सिद्ध होगा। अश्लील चलचित्र और गलत साहित्य पर रोक, भड़काऊ परिधानों का निषेध आदि भी बचपन को खुशहाल और जीवंत बनाने में सहायक सिद्ध होगा, क्योंकि कहा जाता है कि हम जैसा देखते हैं सुनते हैं उसका हमारे मानस पटल पर  हू बहू चित्र अंकित होता है। अतः कोशिश करें कि हम बच्चों को स्वस्थ माहौल और सुंदर वातावरण दें। फिर बाल अपराध स्वत: काम होने लगेंगे और बच्चों का बचपन भी भटकाव के मार्ग के बजाय  संरचनात्मकता की ओर अग्रसर होगा।
धन्यवाद।

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