कोई कारवां नही है कोई सफ़र नही है।
नसीब का दिया हुआ कुछ मयस्सर नही है।।
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जो मिल गया हमे वही बहुत ही रहा।
दर-बदर हूं मैं मेरा कोई भी दर नही है।।
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अब आदमी ही आदमी का क़त्ल कर रहा।
आदमी को ही आदमी का डर नही है।।
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रिश्ते भी टिके हुए हैं जबरदस्ती की नींव पर।
अपनों के ही साथ हर किसी का बश़र नही है।।
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दो वक्त की रोटी के लिए कभी वक्त न देखा।
किस हाल मे हूं मैं किसी को ख़बर नही है।।
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नश्तर से ज़िन्दगी ने कुछ इतने चुभो दिये।
पत्थर सा हो गया हूं कुछ भी असर नही है।।
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अनूप दीक्षित”राही
उन्नाव उ0प्र0
