क्यों लाज नहीं आई तुम्हे ? – विजय कुमारी सहगल

क्यों लाज नहीं आई तुम्हे ? – विजय कुमारी सहगल

क्यों लाज नहीं आई
तुम्हें?
 एक धर्म को
 दूसरे धर्म से
 लड़ाते हुए
क्यों लाज नहीं आई
 तुम्हें?
 एक जाति को
 दूसरी जाति से
 लड़ाते हुए
क्यों लाज  नहीं
 आई तुम्हें।
एक वर्ग को
आपस में ही
लड़ाते हुए
क्यों लाज नहीं
आई तुम्हें।
 जगजननी को
निर्वस्त्र घुमाते हुए
उसकी अस्मत
लूटते हुए
फिर उसकी
हत्या करते हुए
 तुम्हारी ही मां ,बहन
,पत्नी, बेटी का
प्रतिरूप थी वह
 क्यों तुम्हारी रूह
 नहीं कांपी
यह कुकृत्य करते हुए
क्यों लाज नहीं आई
तुम्हें
 अंत निकट आ गया है
 तुम्हारा
 एक नारी को जो तुम ने
ललकारा है
इस धरा पर कहीं भी
  छुप लो तुम
अब निश्चित ही विनाश
तुम्हारा है__


 विजय कुमारी सहगल
बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश।

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