मेरे चेहरे की शिकन उसे परेशान कर देती है।2
वह मां ही है जनाब जो बच्चों पर अपनी जान दे देती है।।
खुद को समेट लेती है घर की दहलीज में।2
बच्चों के चौक पर लेकिन अपने अरमान दे देती है ।।
वह माँ ही है जनाब जो बच्चों पर अपनी जान दे देती है,
सह लेती है सारे गम,उफ्फ तलक नहीं करती।2
खुद को पर्दे में रख,हमें पहचान दे देती है।।
वह मां ही है जनाब जो बच्चों पर अपनी जान दे देती है ,
की देखा ही नहीं कभी,उसे चैन-ओ-आराम से सोते।2
हमारी परवरिश में ही वो,अपनी नींदे तमाम दे देती है।।
पापा से डांट सुनती है, वह दादा- दादी की भी सहती है।2
तानें जमाने के सहकर भी, हमारे सपने को अंजाम दे देती है ।।
वह मां ही है जनाब जो बच्चों की खातिर अपनी जान दे देती है,

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