अपने छोटी सी दुकान के काउंटर पर बहुत देर से ग्राहक की इंतजार मे खड़ा सुखराम अपने दाँयी तरफ लगी लक्ष्मी गणेश की तस्वीर पर मायूसी के साथ नजर दौड़ाते मुंह मे कुछ बुद्बुदाता नजर आ रहा था, जैसे मानो उनसे यह गुहार लगा रहा हो की सुबह से दोपहर हो चला, हे विघ्न हर्ता और धन की देवी, कोई तो ग्राहक आ जाय, नही तो भला, अपने 7 सदस्यों वाले परिवार को कैसे मुँह दिखाऊँगा, जो इस आशा के साथ मेरा इंतजार कर रहे होंगे की घर मे खाना तभी बनेगा नही तो पिछले दो दिनों की भाँति आज भी चुड़ा-गुड़ खाकर और पानी पीकर सोना पड़ेगा, ऐसे अनेको तरह की बाते मन मे आते जा रही थी, और कब वो उसके आँखों के सहारे आँसू के सहारे उसे भावुक कर गयी, उसे पता नही चला, तभी अचानक उसकी कानों मे एक तोतली अंदाज को समेटे आवाज गूंजने जैसा महशुष् हुआ,
दादा दी माँ कहाँ मिलती है?? हाथ मे लिए पैसे युक्त बैग को बढ़ाते हुए 5 वर्षीय शिवम ने मीठी तोतली आवाज थी,
बेटा माँ कोई दुकान मे मिलने वाली कोई वस्तु थोड़े ही हैं, माँ तो प्रत्येक घर मे मिलती हैं, कह सुखराम ने शिवम के सर को सहलाते हुए उसके हाथ को उसी के तरफ कर दिया, बेटा माँ पैसे से नही मिलती बेटा???
शिवम की जीद को लेकर सुखराम अपने आप को परेशान सा महशुश करने लगा और उसके हाथ से पैसे का बैग ले लिया, कहा माँ यही मिलती हैं, ऐसा बोल उसने बैग खोला तो उसमे 500/500 के नोटो को देख वह आश्चर्य मे पड़ गया, और चंद मिनटो मे उसके मन यह भावना समा गयी की शायद भगवान ने हमारी सहायता करने के क्रम मे इस नादान बालक को भेज दिया हो, लेकिन दूसरी तरफ ये भी मन मे विचार आने लगा की अबोध बालक से पैसा ठगना मतलब महापाप जैसा गलती होगा और उसके लिए भगवान माफ नही करेंगे, इसी उहापोह मे फिर उसके कानों मे आवाज फिर से गुंजी,
बताओ ना दादा दी, माँ कहाँ मिलती हैं, मेरे पास पैथे ही पैथे हैं, मुझे मां दे दो,
इसबार प्यार के साथ सुखराम के बोल थे, बेटे माँ तुम्हारे घर मे ही तो हैं, बाहर क्यु ढूंढ रहे हो??
नही दादा दी घर मे मेरे घल मे मे जो लहती हैं, उसी ने कहा तेरी माँ यहाँ नही रहती हैं, मेले पूछने पर मालते हुए घल से भगा दी जा बाहर ढूंढ ले अपनी माँ को, तो मेले पापा ने जो मुझे ये बैद दिए थे उसी से माँ को खोद रहा हूँ ,
अपने दुख दर्द को भूल कर शिवम को अपने काउंटर पर बैठाकर पुचकारने लगा, बेटा तुम्हारा नाम क्या है??
थिवम, तोतली अंदाज मे सुखराम को फिर से भावुक कर दिया,
तभी दुकान के सामने टैक्सी से सामान उतारते हुए सख्श को देखते ही शिवम जोर से चिल्लाया…
पापा…… पापा…… पापा
अरे बेटा तुम यहाँ कर रहे हो, ये सुनते ही शिवम उछल कर अपने पापा से लिपट कर रोने लगा, तभी सुखराम ने पैसे से भड़े बैग को शिवम को पापा प्रेम प्रकाश की तरफ बढ़ाते हुए शिवम और उसके बीच की हुई घटना को रख दिया,
जानते हैं भाई साहब, मात्र 2 साल का था तो इसकी माँ यानी मेरी पहली पत्नी श्रद्धा हमे छोड़ कर सदा के लिए चली गयी, इसकी परवरिश के लिए दूसरी शादी किया लेकिन सौतेली माँ के रूप मे इसे हमेशा प्रताड़ित करती रहती हैं, इसलिए इस तरह की सिचुएशन आ गयी, आपको परेशानी हुई, इसके लिए माफी चाहूंगा,,
नही जी, ऐसा कह शर्मिंदा ना करे, सुखराम ने कहा,
बैग से 500 के 4-5 नोट निकाल कर देते हुए प्रेम प्रकाश उसे लेने के लिए आग्रह करने लगे, सुखराम के मना करने के बावजूद वे उसके जेब मे डाल दिए और शिवम को अपने साथ लेकर चले गए, लेकिन अभी तक शिवम की तोतली आवाज मे वो शब्द गूंजती रही
द्वारा रचित
डॉ अरविंद आनंद