मजदूर हूँ , मेहनत की हद पार करने पर हो जाता मजबूर हूँ
फिर भी आए दिन ना जाने क्यु, सुख चैन से सदा रहता दूर हूँ
बेबस,लाचार, बदकिस्मत के रूप मे सबको होता रहता मंजूर हूँ
दुःख दर्द के नाम पर यूँ ही मान लिया जाता दुनिया का दस्तूर हूँ
अपने अरमानो का कातिल,खुद के लिए ऐसा कर देता कसूर हूँ
चाहकर भी अपनो को खुश नही रखता ,जैसे मानो पेड़ खजूर हूँ
काम पुरा करने पर भी कामचोरो की श्रेणी मे आ जाता जरूर हूँ
बात अपने हक की करने पर मुझे मान लिया जाता मैं मगरूर हूँ
क्युकि मै मजदूर हूँ, मेहनत की हद पार कर हो जाता मजबूर हूँ
जी हाँ मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ, मै मजदूर , मैं मजदूर हूँ

##साभार
डॉ अरविंद आनंद