मनहरण घनाक्षरी – हरिकान्त अग्निहोत्री महर्षि

मनहरण घनाक्षरी – हरिकान्त अग्निहोत्री महर्षि

वीर भद्र अनुचर,
बोले शिव हर-हर,
असवार बैल पर, भोले सुखधाम जी|
वेद कहते अखण्ड,
तप करते प्रचण्ड,
रहते समाधि पर, सदा अविराम जी|
मांगता है जो भी भक्त,
वर में दें वो शसक्त,
भोले का भजन करें, सब आठों याम जी|
सावन का सोमवार,
पावन सा उपहार,
गंङ्गा जल धार के महर्षि भजो नाम जी||

हरिकान्त अग्निहोत्री महर्षि

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